नारी | Nari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47.73 MB
कुल पष्ठ :
207
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ नारी
पहुँचती । वहू नहीं आया, नहीं आया, तो न आने दो उसको ।
मेरा सच्चा' बेटा तू ही निकली । तू उससे जुदी नहीं है । नहीं
है-नहीं है ! बेटा, घबरा मत, मैं सुत्तं में हूँ। अब मेरा दुख
दद॑ सब दूर हो रहा है । अब बहुत देर नहीं है । रो मत । रोकर
ऐसे समय क्या सुकते दुखी करेगी ? मेरा तो बुढावा आगया ,
लड़के को देखना । तेरा पुण्य तुझे सुखी रकखे !
उसी. रात जमना छोटे बच्चे के साथ घर में
अकेली रह गई ।
उसे चारों ओर अँधेरा ही अँधेरा दिखाई दिया । कैसे वह
इस घर में निराश्रय होकर रह सकेगी ? उसे जान पड़ा, मानों
उसकी समस्त बुद्धि का लोप हो गया है । यह उसके ऊपर अत्यन्त
घातक प्रहार था । फिर भी लड़के को देखकर उसने अपने को
संभाला । जो प्रहार पहले अत्यन्त भयडूर जान पड़ता है, वही
अपनी चोट कर चुकने पर वैसा नहीं प्रतीत होता । उस समय
वहू एक छोटे से स्थान में मरहम पट्टी से छिपाकर रख लिया जा
सकता है । जमना को भी ऐसा ही करना पड़ा ।
कुछ प्रकृतिस्थ होते ही उसे मालूम हुआ कि जितना उसके
घर में है, सब उसीका नहीं है। उसके ऊपर ऋण का एक बड़ा
बोझ है । उस घर में इस ऋण का आगमन पहले पहल नवागत
शिशु की ही तरह विज्षेष आनन्दोत्सव के साथ हुआ था । बच्चे
निर्दिष्ट सीमा तक बढ़कर रुक जाते हैं, परन्तु ऋण को किसी
सीमा का बन्घन कहाँ । वह बढ़ता जाता है, बढ़ता ही जाता है।
यहाँ तक कि घर का छप्पर और दीवार भी उसका बढ़ना नहीं
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