निर्ग्रन्थ - प्रवचन | Nirgranth Pravachan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६० ) प्रभम अध्याय ।
अधर्मास्तिकाथ ( आगार् ) आफाशास्तिकाय ( कालो »
समय ( पोग्गलमंतवों ) पुद्डल अर जीव (एस) ये छः ही
द्रव्य वाला ( लोगुतति ) लोक है। ऐसा ( बरद।सिदि ) केवल
ज्ञानी ( अशह६ >) शजलिखरा ने ( पणणुता ) करा दे ।
भावाथः है गे हम ! घमोसितिकाय [ यों ४10०
शांत ६ ण्याता) छा गाजीता 0 80 891
७ |10) 0७18४ ावालाफओ6 पता 0६ हुा॥९१
पलक वि. शीत छा लाता सावे गरक्ष 10. 1एॉ-
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गमन करने में सदाय्य भूत हो! अधमोास्ति काय [०1०
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जीव आर अजीब पदार्थों की गति को अवरोध करने में कारण
भूत एक वृदय है । ओर आकाश, समय, जड़ और चेतन इन
छः द्वब्यों को ज्ञानियों ने लोक कद कर पुकारा है।
घस्मो अदस्मा आगाए; दव्य इंक्रकमादिय ।
अखुतवाश य दृव्या णिय; काल पृश्गलजतवी ॥१४॥
घअन्चया।५+--४ इन्द्र भूति | (घम्मी) धर्मास्ति काय (अषह
म्मों ) अधर्मोसित काय ( आग ) ्राकाशास्त काय (दुव्व)
इन द्व्यों को (इक्तिक) एक एक दब्य (आहिये) कड़ा है (य)
झार (कालो ) समय ( पुर्गक्ष जंतवो ) पुद्ुल एवं जीव इन
द्रष्यों को ( अशंता|रिण ) अंत कहे हूँ ।
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