वैष्णवधर्म | Vaishnav Dharm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परमात्मदेव के पद पर पहुँचते-पहुँचते विष्णु को कई अन्य देवताओं से भी मनेक प्रतिष्ठासुचक शब्द मिले. जिनमें चक्रपाणि तथा कृष्ण जैसे छाव्द वैदिक देवता सबितु वाले बर्णनों से किसी न किसी प्रकार लिए गए कहे जा सकते हें । वैप्णवध्म के उपास्यदेव का एक दूसरा नाम नारायण हे जो वेदिक साहित्य के अंतर्गत मनेक स्थलों पर आया है । ऋग्वेद में एक स्थल पर इस प्रकार कहा गया है--- आकाश पृथ्वी और देवताओं के भी पहले वह गर्भाडरूपी वस्तु कया थी जो सर्वप्रथम जल पर ठहरी थी और जिसमें सभी देवताओं का भी अस्तित्व था ? जल के ऊपर वही गर्भाड ठहरा हुआ था जिसमें सभी देवता वर्तमान थे और जो सभी कुछ का आधार-स्वरूप है । वह विचित्र वस्तु अजन्मा की नाभि पर ठहरी हुई थी जिसके भीतर सभी विद्यमान थे । जिससे पता चलता है कि.सवसे. प्रथम _ जल का अस्तित्व माना गया है जिस पर्‌ ब्रह्मांड का ठहरना.बतलाया गया है । _यह _ ब्रह्मांड दी कदाचित्‌ वह वस्तु है जिसे. आगे चलकर .जगत्लष्टा. अथवा ब्रह्मदेव की _ पदवी दी गई और वह अजन्मा जिसकी नाभि पर वह गर्भाड ठहरा था. वही. नारायण है। इस ब्रह्मांड में सभी देवताओं का वर्तमान रहना कहा गया है गतएंव नर से अभिन्नाय यहां पर उन सभी देवताओं अथवा मानवों से भी हू जिनके अयन वा अंतिम कक्ष नारायण हूं और वे ही उनके आधार-स्वरूप भी हैँ । इस नारायण शब्द की वैदिक देवतावाची विष्णु अवर्तयत्तूरयों न चक्रमू । क्ाग्वेद २११२० आकृष्णेन रजसा वर्तमान । वही श३५१२ तथा सबिता. . . . . . . दर कृष्णेन रजसा चामृणोति । वही १३५1९ परो दिया पर एना पृथिव्या परो देवेभिरसुर्रयंदस्ति। केस्विट्‌ गर्म प्रथमं दघ्न आपो यत्र देवा समपदयन्त विषये ॥५॥ तमिद्‌ गर्भ प्रथमं दघ्न मापों यन्र देवा समगच्छन्त विश्वे। अजस्प नाभावध्येकमपिंत॑ यस्मिस्विशवानि भुवनानि तस्थुः 0६1) चही १०१८२1१५-६ न रुप नर




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