भारत के स्त्री रत्न | Bharat Ke Stree Ratna

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रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

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शंकरलाल वर्मा - Shankarlal Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ दक्ष-कन्या सती बिरंगे छोटे-छोटे पत्थर इकट्रे करके घर आार्ती । माता उन्हें देख कर हँसती झौर कददती-- अपने घर में नेक मणि-मुक्तादि रत्न मरे पढ़े हैं उन्हें छोड़ इन पत्थरों को तुम क्यों इकट्रें करती हो ? राजकुमारियाँ कुछ जवाब तो न देतीं पर मणि-सुक्ताओं की उपेक्षा करके इन पत्थरों से दी अपने खेल के घर सजातीं । शने शने राजकुसारियाँ वड़ी हुई । तब खब समारोह के साथ प्रजापति दक्ष ने उनके विवाद कर दिये । मनचाहे समधी और जैंवाइयों के मिलने से राजा-रानी के छानन्द का वारापार न रहा । विवाद के वाद एक-एक करके राजकुमारियाँ अपनी घ्मपनी सुसराल गई और आनन्दुपूवक अपने घर-बार सम्द्दालने में लग गई । परन्तु दक्ष की एक कन्या अभी भी झुँवारी थी । इसका नाम था सती । सती सब कन्याओं से छोटी होने के कारण माती- पिता का इस पर सब से अधिक खेंह था । राजा-रानी की इच्छा यह थी कि सती जब सयानी दो जायगी तब दूसरी सब कन्याओं से ज्यादा ठाटबाट से और भी अच्छे वर के साथ उसका विवाह करेंगे । सती के रूप॑-गुणं की तो बात ही क्या कही जाय ? बेसे तो राजा दृक्ष की सभी कन्याएँ छजुपम सुन्दरियाँ थीं परन्तु सती के साथ तो उन किसी का सुक़ाबिला नहीं हो सकता था । सती का सौन्द्य उसके शरीर के बरण अथवा उसके नेत्र या कानों की बना- बट में न था। उसका सौन्द्य तो था उसके भाव में उसके शरीर की दिव्य ज्योति में । जिस किसी की भी उस पर नज़र पड़े जाती एकंटक उसे देखता ही रद्द जाता । साधु-सन्यासियों को तो उसे




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