वसन्त राग | Wasant Rag
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about ताराशंकर वंद्योपाध्याय - Tarashankar Vandhyopadhyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रात को रंग्रतायत ने प्रा, 'उल्ति ने ऐसा क्यों कहा ?!
अर सारा वृत्तान्त बताया। यह ग्राम उनका मूल वास-स्थान नही है।
पमुद्रतट के निकट ही, शहर मे कुछ ही द्वर उनकी बस्ती थी । कोई पचास परिवार
थे। अत्याचार उतर पर होते ही थे। पर विग्रह दो वर्षों से मरहद्टा, निणाम, अंग्रेजों
आदि का युद्ध चल रहा है। इसी यूद्ध में उनका ग्राम चार वार जला दिया गया--
दो बार जलाया मराठों ने, एक बार अंग्रेजों ने, एक बार निजाम ने। जिसके भी पथ
में यह ग्राम आया, उसीने अत्याचार किया ) इस कन्या उन्नि को वे लोग पकड़कर
से गए थे। तीन दिन वाद जब छोडा, तो वह विक्षिप्त हो चुकी थी। रात्रि होते
ही चीखने लगतो, 'नही'*'नही नही ! छोड़ दे ! छोड़ दे ! मार'*'मार डाल !!
रात भर यही क्रम चलता । दिन में भी किसी भो अपरिचित को देखते ही भागकर
छिप णाती है। यदि वह आंगन्तुक यही ठहर जाता है, तो चिल्लाती है, 'रक्त ले,
रत ले ! उन्होंने हमारा रबत क्यों लिया २! चार आक्रमणों मे उन लोगों ने इनके
आम के बीस से भी अधिक व्यवितयीं को कोच-कोचकर मारा है। वह भी इसने
देखा है। तभी से वह ग्राम छोड़कर इन लोगों ने इस बन में आश्रय लिया है।
अभी ठीक से घर भी नहीं घना पाए, किसी प्रकार झोपडिया बना रखी हैं। अब भी
सभी कहते हैं--“यहा भी नही, वन के और भो अन्दर चलो, जहां कोई भी हमारा
पता न पा सके ।
रंगनायन के नेत्र भर आएं। रात भर वे सो न सके । माल्यवान-पम्पासर की
यात्रा का विचार उन्होंने स्थगित कर दिया। अयली प्रातः उतने लोगो से विदा
सेकर दे मद्रास प्रान्त में अपने आश्रम में लौट आए।
मन में उन्ही बातो का चक्र चल रहा था। ये सरल प्राणी हैं---दीन, वंचित,
पदावनत । क्यों ? इनके ऊपर इतना अत्याचार क्यो ? इतनी अवज्ञा क्यों ? इतनी
धृणा किसलिए ? महाभारत की वात याद आई।
महावलिपुरम में प्रस्तर-सण्ड पर खुदी हुई अर्जुन की तपस्या की कथा याद
आई।* अर्जुन के तप से तुष्ट होकर स्वयं महारुद्र किशत वेश मे अवतरित हुए थे।
साथ ही पघारी थी--जिरातिनी के वैश में स्वर्य पारवेती । इसी कथा के अवलम्बन
पर गीत रचना करके वे सिद्ध करेंगे कि ये लोग महारुद के ही वशधर हैं। ये
अस्पृश्य नहीं हैं, विपुत शक्ति के अधिकारी हैं। फिर स्मरण हुआ था धर्मव्याध को
कथा का--जिनके पात शह्यण-कुमार कौशिक ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने गए थे । इस
कथा का भी कुछ अंश जोड दिया था ।
कौशिक को स्याध के पास जाने का निर्देश दिया था एक पिता नादी ने।
+*अब पता चला है कि यह चित्र भगीरय की तपस्या का है। 19वीं शताब्दी में
इसे अर्जुन वा ही चित्र माना जाता था। “लेखक
User Reviews
No Reviews | Add Yours...