राजसिंह उच्चकोटि का मौलिक ऐतिहासिक नाटक | Rajsingh Ucchkoti Ka Maulik Aitihasik Natak

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Rajsingh Ucchkoti Ka Maulik Aitihasik Natak by आचार्य चतुरसेन - Acharya Chatursen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजसिह २१ [राणाजों घोड़े पर सवार सब सरदारों सहित आते हैं] सब लोग--(हर्प से) जय, महाराणा राजसिंह की जय । हिन्दु- पति हिन्दूयूर्य राएाजी की जय । श्री एकलिद्ध के दोवाम की जय । [पर्दा बदलता है] दूसरा हृश्य [रघान--चित्तौड़ का विला : मेंदान में महाराणा राजमिहजी प्रपने सरदारों सहित खड़े दातें बर रहे हैं।] गहाराणा--तो यह सवर वित्फुल सच है ? रावत रघुनाथसिह-- (हाथ जोइबर) पृथ्वीनाथ ! सेवक को विश्वस्त सूत्र से सबर मिली है...... महाराणा--फि समू नगर की लड़ाई में मुराद और झौर झौरंग- जेब वी सम्मिलित संन्‍्य ने दारा को परास्त कर दिया 1 रावन रघुनाथमिह--जी हाँ, महाराज ! झौर इसके बाद भौर॑ग- जैव ने कौधल से मुराद को कद करके सलौमगढ़ में भेजे दिया है भौर बूढ़े दादशाह को झागरे के किसे बं.इ कर लिया है। महाराणा-द्वारा भव वहाँ है ? रायत रघुनाधमसिट---बट पहिले पंजाद भाग गया था । पर झौरंगजेब ने तावड्-सोह उसका पीछा विया। प्रद




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