राजसिंह उच्चकोटि का मौलिक ऐतिहासिक नाटक | Rajsingh Ucchkoti Ka Maulik Aitihasik Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
227
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजसिह २१
[राणाजों घोड़े पर सवार सब सरदारों सहित आते हैं]
सब लोग--(हर्प से) जय, महाराणा राजसिंह की जय । हिन्दु-
पति हिन्दूयूर्य राएाजी की जय । श्री एकलिद्ध के
दोवाम की जय ।
[पर्दा बदलता है]
दूसरा हृश्य
[रघान--चित्तौड़ का विला : मेंदान में महाराणा राजमिहजी
प्रपने सरदारों सहित खड़े दातें बर रहे हैं।]
गहाराणा--तो यह सवर वित्फुल सच है ?
रावत रघुनाथसिह-- (हाथ जोइबर) पृथ्वीनाथ ! सेवक को
विश्वस्त सूत्र से सबर मिली है......
महाराणा--फि समू नगर की लड़ाई में मुराद और झौर झौरंग-
जेब वी सम्मिलित संन््य ने दारा को परास्त कर
दिया 1
रावन रघुनाथमिह--जी हाँ, महाराज ! झौर इसके बाद भौर॑ग-
जैव ने कौधल से मुराद को कद करके सलौमगढ़ में
भेजे दिया है भौर बूढ़े दादशाह को झागरे के किसे
बं.इ कर लिया है।
महाराणा-द्वारा भव वहाँ है ?
रायत रघुनाधमसिट---बट पहिले पंजाद भाग गया था । पर
झौरंगजेब ने तावड्-सोह उसका पीछा विया। प्रद
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