किस्मत का खिलाड़ी | Kismat Ka Khiladi

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Kismat Ka Khiladi by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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किस्मत का खिलाड़ी / २१ वी शोर ही चलना है ।' सवेरा हो गया । सरोवर के पास राजा नित्यकर्म से नियृत्त हुपा । सवार हो गया घोड़े पर | चार दिन तक बड़ी तीव्रगति से घोड़ा दौट़ाया | सौ योजन पूरे हो गये । एक सघन गुन्दर बन में पहुंच गया राजा | एक वटवृक्ष के नीचे घोड़े को 'बाँध दिया भ्रौर स्वयं भी बैठकर सोचने लगा--यहां तक तो भ्रा गया । पर यहा तो कोई नहीं है । यह पहाड़ कितना ऊँचा है। यहाँ पया फोई रहता होगा ? प्रव तो यहाँ कोई नहीं | है ।” यों सोचते-सोचते राजा का ध्यान एक झोर गया | उघर वापी फे पास एक स्त्री बेठी थी । कुतूहूलयश राजा उस स्त्री | के पास पहुंच गया श्लौर बोला-- “कौन हो तुम ? दुःख की मारी लगती हो ? किसी साथ से विछुड्ट गई हो बया ? ऐसे बड़े बन में तुम्हें भ्रकेला ' देखकर मुझे बड़ा भ्राश्वयं होता है 1 ह रप्री मे धपने भ्रोठों पर तर्जनी ऊंगली रख कर राजा फो संकेत दिया कि बोलो मत । चुप रहो । फिर पर्वत की ' प्रोर हाथ उठाकर पुनः संकेत से समझाया कि इधर से खतरा है। स्त्री के बजने पर राजा मौन तो हो गया, पर उसके मन ' में धतृप्त जिशासा फी बेचेनो बढ़ गई । भव वह धभपने मन से ' ही प्रश्न करने लगा भौर उस स्प्री के विपय में तरह-तरह वे ' प्रयुभान जगाने तगा । कुछ ही देर बीती कि पहाड़ सो घोर : घड़ी जोर फा धट्टहास हुआ । घव पघनचाहे ही वापी के पास बेटो री के मुंह से ये शब्द एडाएवन निकल पढ़ें--




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