सभाष्यतत्वार्था धिगम सूत्र | Sabhashyatatvartha Dhigam Sutra

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Sabhashyatatvartha Dhigam Sutra by खूबचन्द्र सिद्धांत शास्त्री - KhoobChandra Siddhant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कारिका'। ] समाप्यतार्थाधिगमसूत्रम ॥ ६ तीथेप्रवत्तेनफ्ल यत्मोक्त कर्म तीर्यकरनाम । तस्योदयात्तृतायें 5प्यहस्तीर्य भवुतयति ॥ ९ ॥ अर्थ--ज्ञानावरणादि आठ प्रकारके कर्मोंमें एक नामकर्म भी है। उसीका एक भेद तीथेकर नामकर्म हे | उसका यही फल-कार्य है, कि उसका उदय होनिपर जीव तौष-मोश्ष मार्गका प्रवर्तन करता है। अरहत मगवाने इस तीवफर नामकर्मफा उठय रहता है। यही कारण है, कि भगवान्‌ कृतकृत्य होकर मी तीर्यका प्रवत्तन-मेक्षमार्गका उपदेश [किया करते ह। भावारय;---केवर तीर्यकर नामकर्मके उठयवश होकर विना इच्छाके ही भगवान्‌ उपदेश करते है। अतएव उनके उपदेश और ऋतकत्यतामे किप्ती प्रकारका विरोव नहीं आता । तीर्थंकर कर्मके कार्यक्ों दषान्त द्वारा स्पष्ट करते हे-- तत्स्वाभाव्यादेव प्रकाशयति भार्करो यथा लोकम्‌। तीर्थप्रवतेनाय प्रवतते तीथेफर एवम्‌ ॥ १० ॥ अर्थ--निप्त प्रफार सूये अपने खमावमे ही छोक्‍को प्रफाशित करता है, उप्ती प्रसार तीर्थंकर नामकर्मफा भी यह स्वभाव ही है, कि उसके उदयसे तीयका प्रवर्तन हो । अतएव उसके उठ्यके अधीन हुए अरहत सूर्य समान तीप्रवर्तनमें प्रशृत्त हुआ करते है। भाषार्थ--वस्तुका स्वमाव अतक्य होता है---५ स्मावोह्तक गोचर ” | निम्त प्रकार सूर्य अभि जछ वायु आदि पढार्थ अपने स्वभावत्ते ही अतक्ये कार्य कर रहे हैं | उसी प्रकार कर्म अथवा तीर्थंकर प्रकृति भी म्वमावत्ते ही कार्य करती है। इप्त प्रकार तीयैकर प्रकृतिके उठयते धर्मझ्र उपदेश देनेवाले तीयेकर इस्त युगमें वृषभादि महावीर पर्यत २४ हुए है। इस समय अतिम तीथेकर महावीर भगवानया तीर्थ चढ़ रहा है । अतएव उन तीयेफ़र भगवानका यहूँ। कुछ उछेख करते है --- य; शुभरुमोसेवनभावितभाणो भवेप्वनेकेषु । जग ज्ञातेक्ष्याकुप सिद्धायनरेन्द्रकुलदीप: ॥ ११ ॥ अर्थ--अनेक जम्मोंमें शुम कर्मोंके सेवनसे निनके परिणाम शुभ स्लारोसति युक्त हो गये थे, और जो सिद्धार्थ नामक राजाके कुरुफे प्रकशित करनेके लिये दीपफक्े समान थे, उन्होने इक्ष्याकु नामक प्रशस्त जातिके वशरम जन्म घारण जिया था। भावाय--भगवान्‌ महावीरस्वामीने इक्ष्याकु वशमें जन्म लिया था। और उनके विताशा नाम छिद्धाव था | उनके भाव-परिणाम अनेक भव पंहलेसे ही शुममेंक्रे करनेंपे उत्तरोत्तर अधिराधिक सुस्तस्‍्क्कत छोते आ रहे थे। ब-्क्योंकि लिहली पर्योयसे शो शुभ फक्‍्माका करना ओर उनके द्वारा डारी जात्माता सुमन होना झुछ्त होगया था ।




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