जय सोमनाथ | Jay Somnath
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
334
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दंबी प्रकोप 22
नर्तकी नहीं हूं, शिव-निर्माल्य हूँ ।
इसी लिए तो शिव पर चढे हुए फूछ को मैंने भी मस्तक वर घढ़ाया
है | और छे, मैं मूंह फेरकर खड़ा हो जाता हूँ, तू कपड़े पहन छे ।/
भीमदेव हँसता हुआ मुंह फेरकर खड़ा हो गया । घवराहट में घारों
ओर देखती हुई चौडा ने जंसे-तैसे कपड़े पहने | काप्रालिक के भय और
वस्त्रह्वीनता की छज्जा के कारण उसका हृदय अभी तक ठिकाने नही
आयाया।
अब मैं मुटूं ?
'हाँ, मुडे,' चौटा ने उत्तर दिया 1
“अच्छा हुआ कि मैं यहाँ था, नहीं ती **!
“आपको कालमुसे का डर नही छगा ? वह मर गया, न जाने इससे
बया होगा ? ऐसे भयकर अधोरी को छूने का साहस आपको कंसे हुआ,
यह तो महादेवजी ही जाने । क्या भगवान् अपनी नर्तकी को कभी भूछ
सकते हैं ?”
भीमदेव फिर हँसा और चौटा पास आई ।
“आप बड़े साहसी है ।'
“तू कहती है, इसलिए मुझे विश्वास होता है।'
“मैं अब जाती हूँ | आप यहाँ कब तक हैं.
“मैं ? मुझे तो भगवान् ने इतने ही कार्र ने तिए भेजा था; मैं की
वापस जाता हूँ ।' 7
“इस समय कहां जाते हैं?
ववाटण ।'
लेकिन आज सबेरे ही तो
जाता है ?” चौला हेमी--पहत रा
रमणीयता सहखधा होती डर
“किसीसे न कहो हो
“नही रहेंगी । ऐश या है
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