समाधि की निष्पन्ति | Samadhi Ki Nishpati
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about युवाचार्य महाप्रज्ञ - Yuvacharya Mahapragya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपनी खोज ११
रहेगा तव तक निर्वाध सुख नहीं होगा। निर्वाध सुख के लिए दृष्टि को सम्यक्
करना भी बहुत जरूरी है।
अस्खलित शक्ति की साधना
हमारी शवित स्खलित क्यो होती है ? शक्ति में बाधा क्यो आती है ? बहुत
मुल्यवान् प्रश्न है। हमारी सारी जीवन की पद्धति को दिशा देने वाला और
बदलने वाला प्रश्न है कि शक्ति मे बाधा क्यो आती है ? शक्ति मे इसलिए अवरोध
और रुकावट आती है, हमारी शक्ति इसलिए स्खलित हो जाती है कि हम दूसरो
के सुखो को कुचलने मे रस लेते है, दूसरो की शक्ति को क्षति पहुचाने में हमारा
रस है। हर आदमी दूसरे की शक्ति को क्षति पहुचाना चाहता है। हर व्यक्ति यह
चाहता है कि दूसरा मुझसे बडा न बने और जहा भी वडा बनने लगता है उसके
पख काटने का प्रयत्न होता है, उसके पैर तोडने का प्रयत्न होता है और उसे पीछे
ढक्षेल दिया जाता है। मालिक कब चाहता है मनीम उसके वरावर बन जाए या
उससे आगे चला जाए। औरो की वात छोड दे, पिता भी नही चाहता कि बेटा
उससे आगे चला जाए। पति कभी नही चाहता कि पत्नी उस पर हावी हो जाए।
कोई मुझसे वडा बन जाए, यह किसी को पसन्द नही है । हर व्यक्ति दूसरे को
नीचे रखना चाहता है । अपने कन्धे के वरावर कोई दूसरा कन्धा मिलाए, वह उसे
अच्छा नही लगता । कन्धा थोडा नीचे रहे तो सतोप होता है, अच्छा लगता है।
अपना मकान सबसे ऊचा रहे। अपनी मोटर-कार सबसे वडी रहे । अपना घर
सबसे वडा रहे । अपने कपडे सबसे बढिया रहें यानी अपनी हर वात सबसे ऊची
रहे और दुनिया यह माने कि यह सबसे वडा आदमी है तब बडा सतोष का अनुभव
होता है । और जब यह बात आ जाए कि सव बराबर, तो ऐसा लगता है कि जीने
ओर मरने मे कोई फर्क नही पडेगा। धन कमाया या नही कमाया, कोई सार नही
है। जब सब बरावर तब फिर मतलब ही क्या रह गया ? यह धन की सारी
लालसा, वैभव बढाने की कामना, पदार्थ जुटाने की भावना और सबसे मूल्यवान्
वस्तु खरीदने की कामना इसलिए है कि मैं अकेला दीखू, अकेल। चमकू। सवको
ऐसा लगे कि यह सबसे बडा आदमी है।
कवि ने कहा---सूर्य ! तू मुझे अच्छा नही लगता ।' सूर्य ने कहा--“भरे भई
क्यो नहीं लगता। क्या मै प्रकाश नही करता ? सारी दुनिया का अधकार नही
मिटाता ? क्या मै सोये पडे मनुष्यों को ० थ नही देता ? फिर क्यो नही अच्छा
लगता ।' उसने कहा--“मै मानता हु, तुम अधकार को मिटाते हो । तुम मनुप्यो के
भय को मिटाते हो, तुम नींद से उठाते हो भौर जागरण देते हो, फिर भी तुम अच्छे
नही लगते। अरे ! फिर मैं क्या द् ? इतना वडा काम करने पर भी मैं अच्छा
नही लगता ” उससे कहा ---विल्कुल अच्छे नही लगते । क्योकि तुम अपने सारे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...