राणा राज सिंह | Rana Raj Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मस्तावना ने मानव स्वभाव मानव स्वभावतः एक सामाजिक प्राणी है। वद्द जो कुछ देखता है; कल्पना या झनुभव करता है; उसे झन्य पर, अपने निकट सहयोगी पर प्रकट किये बिना शान्ति लाभ नहीं करता; इसे चेन नहीं पड़ता ! सचुष्य की कल्पना, विचार तथा अनुभव इसीलिये जन्म घारण करते हैं. कि वे सपा के मस्तिष्क तथा हृदय से झाविभू त होकर सहदय श्रोताओं तथा दशकों के हृदय को रस शावित कर सकें । इसी मानव प्रकृति से काव्य, नाटक, ाख्यायिका तथा उपन्यास आदि का जन्म होता दे । मनुष्य अपनी बात को दूसरों पर इंगितो ( संकेत ) या भाषा ( वातचीत ) द्वारा प्रकट करता है । झौर कभी-कभी चह्द इनके अतिरिक्त भी, वदद किसी का झननुकरण या श्मिनय करके भी छापने मन की वात दूसरों को सुनाता है । इसमे सफल होने पर इसे विशेष झानन्द प्राप्त होता दे । सचुष्य की यही प्रदृत्ति नाटकों के जन्म घारण करने का मूल रूप है । यह मानव प्रवृत्ति किसी देश, जाति तथा धर्म की सीमा में नहीं सीसित हुई किन्तु यह. तो सदा ही असीम तथा साश्वत रही है ।




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