प्रेम कान्ता सन्तति भाग २ | Prem Kanta Santati Part 2

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Prem Kanta Santati Part 2 by आशुकवि शम्भुप्रसाद उपाध्याय - Ashukavi Shambhuprasad Upadhyaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दे दूसरा भाग । पम्प वह--अच्छा, जावा, में भी तुरन्त ही यहां से लो आाऊंगा। उस हारामजादा रवामी बनकर बैठा हवा दारोगा थे फेर में पड़ कर बिचारी कादस्विनी पागल हो रही है इतना सुनते ही वह सलाम करके एक ओर चला गया | ये दोनों शिवालय के दहनी तरफ से एक छोटी सी पगडेडी को पकड़ चलने छगे । कुछ देर तक चुपचाप चलने के वाद कालिन्दी नें कहा--क्या भेय्या के साथ ही साथ चाची भी चली आई वह--हां, उनको मैंने ही आने के लिए कहा था । अब देखें, कुमार के साथही साथ कुमारी सावित्री को छुड़ाने में केसी सफलता मिलती है । कालिन्दी-थआप से कई बार शंट भी हो चकी । समय पर आपने मदद भी पहुँचाई । उस दिन नजरवाय से उस चुड़ल बढ़िया के हाथ से हम लोगों को बचाया भी ।इस समय भी आपह्ी के कहने से हम लोग चली भी आई, सब कुछ इुवा सगर अभी तक आपका परियय हम लोग स पा सकी | आप इस तरह हम लोगा का उपकार करते इए फिरने वाल कोन हैं ? किस मतलब से ऐसा कर रहे हैं ? वह--( हंसकर ) में किसी मतलब से भी नहीं कर रहा! हू । अपने से बड़े के ऊपर जव कभी सुसीबत आपड़ती क्या उसको उससे छोटा मदद नहीं करता हे? मेंने इसी गरज से अपने कतब्य को देख यह सब काम किया है । रही परिचय की बात; चह तुमलोग आपही आप धीरे घीरे पाजावेागी कालिन्दी-जब आप ऐसा कह रहें हैं तो में इसके लिए जोर भी नहीं देती । मगर यह तो बताइए; उसदिन वह बुदिया बनकर आने वाली कौन थी !




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