चाँद रानी | Chand Rani

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Chand Rani by सत्यप्रकाश संगर - Satyaprakash Sangar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्य चाँद रानी नहीं कि न बदाती हो । फिर ध्ातिथ्य में कितना समय लगता होगा मगर उसे इन सब बातों से क्या मतलब ? वह इन लोगों से पृथक रहेगा इनसे बिलकुल नहीं मिलेगा । श्रपने काम से उसे झ्रवकादक ही कहाँ मिलेगा ? लेकिन है मज़ेदार स्त्री । कितनी श्रच्छी बातें करती है नव- युवकों को सिखाना चाहती हई। उसे समाज में चलने-फिरने के योग्य बनायेगी । जसे इसके लिए भी कोई मस्त्र याद करना होता है । किस समाज में ? समाज एक तो है नहीं । वह कितने ही भागों में विभक्त है । वह किस भाग को समाज समभती है ? जसे भ्रध्यापक-वर्ग को तो सोसाइटी में शामिल ही नहीं किया जा सकता । उसका तो श्रपना प्रृथक्‌ वर्गे है--बन्द श्रौर घुटा-घुटा जिससे सब लोग सब प्रकार की झ्रााएँ बाँघे रहते हें। लेकिन एक बात श्रवद्य हूं। कवि को अपने गीतों के लिए नये विषय चाहिए श्रौर विषय लोगों से मिलकर ही प्राप्त हो सकते हूं एकांत में रहकर तो मिल नहीं सकते । ऐसी स्त्री से एक नहीं प्रनेंक विषय मिल सकते हूँ । उसके पास तो कोष धरे होंगे परन्तु यदि वह इन कोष्फ्रेंमें खो गया ? यदि उनकी चमक से उसकी भाँखें चुन्घिया गइं तो ? नहीं वह ऐसा नहीं होने देगा । वह तो केवल तमाधा देखने वालों में होगा करने वालों में नहीं । उसकी इन लोगों से प्राय लगातार भेंट होती रही । केसरचन्द उसे कहीं-न-कह्टीं मिल ही जाते । उसे कार में बिठाकर उसके शभ्रपने घर छोड़ने आरा जाते श्रौर घण्टा-झाध घण्टा उसके पास बैठकर इधर-उधर को गप हाँकते । कभी वह उसे अपने घर ले श्राता खाये -पिये बिना उसके लिए वहाँ से श्राना सम्भव न होता । कभी-कभी पति श्रौर पत्नी दोनों उसके घर चले जाते श्रौर देर तक वहाँ बेठे रहते उसकी नई लिखी कविता सुनते श्रौर प्रशंसा करते । वह अपनी नई कहानी सुनाती श्रौर किसी जासुसी पत्रिका में प्रकाशित कहानी दिखलाती । उसने महसूस किया कि उसके फालतू समय का श्रधिक भाग उनकी संगति में बीत रहा है । स्कूल जानें से पहले भ्रौर स्कूल से श्राने के बाद




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