जातक प्रथम खण्ड | Jatak Part -1

Jatak Part -1 by भदन्त आनन्द कौसल्यायन - Bhadant Anand Kausalyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४५ ) वुद्ध की शिक्षा के अनुसार रूप, वेदना, सज्ञा, सस्कार तथा विज्ञान इन पाँच, ' स्कन्घो का ही यह व्यक्ति वा ससार बना है, इन पाँच स्कन्थो की धारा अच्छे वरे कर्मातुसार वहती रहती हैं, वहती रही हैं और तब तक वहती रहेगी जब तक कोई व्यक्ति तृप्णा का सम्पूर्ण क्षय नहीं कर लेता। पुनर्जन्म प्राय सभी भारतीय दर्शन सम्मत है। वृद्ध की शिक्षा की विशेषता यही हू कि अनात्मवाद के साथ पुनर्जन्म को स्वीकार किया गया है। जन्म मरण के बन्धन से मत होना तो आज दिन भारतीय दार्गनिको का सामान्य आदर्द है । तिपिटक में जिस जातक (ग्रन्थ) का समावेग है वह केवल गाथाओ का सृग्रह है। जिस प्रकार घम्मपद एक चीज है और धम्मपद अट्ठकथा दूसरी, उसी प्रकार जातक एक चीज है और जातक अट्ठकथा टूसरी। अन्तर यह है कि धम्मपद का अर्थ विना घम्मपद अट्ठकथा के समझ मे आ सकता हैं। जातक यद्यपि घम्मपद ही की तरह गाथाएँ मात्र हैं तव भी उन गाथाओ से, यदि पहले से कया मालूम हो तो, पाठक को वह कथा याद आ सकती है। यदि कथा सालूम न हो तो अकेली गाथाओ मे उद्देद्य पूरा नहीं होता। विना जातकट्ठकथा के जातक अधूरा हैं। फिर जातक में केवल भगवान्‌ वुद्ध के पूर्व जन्मों से सम्बन्ध रखनेवाली गाथाएँ भरी है। जातकट्टकथा में अट्ठकथा सहित असली जातक कथाएँ आरम्भ होने से पहले निदान कथा नाम का एक लम्बा उपोद्घात हैं। इस निदान-कथा में सिद्धार्थ गौतम वुद्ध के जीवन चरित्र के साथ उनके पूर्व के २७ बुद्धो का भी जीवन चरित्र हैं। यह सारा का सारा वुद्धवंस' से लिया गया प्रतीत होता है। सहब्बा ते फासुका भग्गा गहकूटं॑ विसखितं,, विसखारगत चित्त तण्हान खयमज्सगा ॥ ' चुद्धबंस के २७ बुद्ध इस प्रकार है--(१) तण्हड्ूरो (२) मेघड्ूरो, (३) सरणड्धूरो, (४) दीपडूरो, (४) कोण्डन्ा, (६) मज्लो, (७) सु- मनो, (८) रेवतो, (९) सोभितो, (१०) अनोमदस्सी, (११) पढ़ुमो, (१२) नारवो; (१३) पढुमुत्तरो, (१४) सुमेघो, (१५) सुजातो; (१६) पियदस्सी, (१७) अत्थदस्सी, (१८) धघम्मदस्सी, (१९) सिद्धत्य, (२०)




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