ईश्वर के सम्पर्क में | Ishvar Ke Sampark Me

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४ ) है। तो दोनों से कौन ठीक कह रहे हैं? दोनो ही ठीक कह रहे हें यदि उनके तत्व को ठीक-ठीक समझना जाय तो | ः यदि ईश्वर जीवन का झमन्त सागर है जहाँ से रच उत्पन्न होते हैं तो हम सब व्यक्ति उसी झनन्त सागर से प्रवाहित होते हैं श्रौर यदि हम ईश्वर के श्रश हैं ठो जो ईश्वर का प्रकाश हमसे परिलिख्ित दोता है उसमें और ईश्वर के प्रकाश में कोई अन्तर नहीं है। यदि समुद्र से एक बूँद पानी ले लिया जाय दो युश और स्वभाव में उसमे श्रौर समुद्र से कोई अन्तर नदी होगा क्योंकि वह पानी समुद्र ही का तो एक ग है । व्ौर थ्रन्तर हो भी कैसे सकता है ? वास्तव मे इम लोग समझने में गलती करते हैं । यद्यपि इंश्वर श्र मनुष्य में कोई अन्तर नहीं है दोनो एक हैं फिर मी इश्वर व्यापक होने से मनुष्य से ऊँचा है महान है । कहने का तात्पर्य यह कि जहाँ तक जीवन का सम्बन्ध है ईश्वर श्र मनुष्य एक ही हैं श्र जहाँ तक जीवन के क्रम का सम्बन्ध है दोनो एक दूसरे से भिन्न हैं। इस प्रकार कया यह बात स्पष्ट नहीं है कि दोनो सिद्धान्त सत्य हैं मेरी राय मे ये कहने के लिये दो हैं .किन्व॒॒वास्तव मे है एक ही। दोनो सिद्धान्तो का स्पष्टीकरण एक ही उदाहरण से हो सकता है 1 घाटी में एक छोटा जलाशय है । पहाड के ऊपर एक बडा झअथाह जलाशय है । वहाँ से घाटीवाले जलाशय से पानी आता है बडा जलाशय छुटे जलाशय में बहता रहता है इसलिये छोटे नलाशय को बडे जलाशय से पानी बरावर मिलता रहता है । छोटे जलाशय के पानी का वही गुण श्र वही स्वभाव है जो बढे जलाशय का क्योकि बडा जलाशय छोटे का जीवनदाता है । दोनो में अन्तर यह है




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