मानस - पीयूष भाग 2 | Manas Piyush Bhag - 2

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Book Image : मानस - पीयूष भाग 2  - Manas Piyush Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ७ नी सिपय दोहा चौपाई श्ादि पूांक (११) दास्यवलामें हास्यपान्ररा दित रदता है दो० १३४, रे (१२) ऐश्वयं कदकर उसे माधुर्यमें स्थापित करते हैं श१४ (१ रे), च्डण (१३) पुश्चर्य दिखानेमें श्रीरामजीको सब्चिदानन्द कहते हैं ११६ (-६)प ७ (१४) एक उपसा यर उत्प्रेक्ासे जब वक्तव्यकी पूर्ति नहीं होती तब शोर उपसारधों वा उस्मरेकारका प्रयोग करते है (१५) बेमव का उत्कप दिखानेमें इन्द्रके वेमवरी उपमा देते हैं १३० ९३), ३७३, (१६) जिस घिपयके व्णंनमें जहाँ जितनी आवश्यकता ससकते वहीं उतनी उपमाएँ दुते हैं दो० १४६, ७२ गोस्वामीजीकी सावधानता १४८ (म), १५१ (१-३), ७-७७, शव गौरी ७म (१), रस, रप४ ज्ञान दो० ध४्ट, हक )» लौकिक धल्तौकिक १५१ (२); ७६१ ॥ है विसल् कान ) दो० ४५, र१र९ ज्ञाच गुम ११७ (७-८); ७३ » संब सत्य है दो० ३१७, नदद,५७६ झन्धका मयोजन ४७ (३१, ३९३३ आासवाखिनियां और लारदू १३.७ (१००९), ७०७ झीचा १४७ (७ , ्द्ह स्कोर चन्दकी उपसा ४७ (७); ३४ स्वफ़वत्तीकि लक्षण १५९ (४), ८४ चतुरमिणी सेना ३५४ (रे), सदन १५ चलुर, चलुराईरा प्रयोग ४७ रे), डभ स्वन्द्र अवसतस नन (६), डेज्े व्वन्द्रमाकी उत्पत्ति अन्नि हे अधुललसे ७२ (५ श््२ ज् ५». सेगवानू के सनसे ७२ (मे), रे थ में घुषिके झंग १४७७ (१9; जद ख्परि दो० ४५४६, परघ चरण पकडना ( बारवार ) मम, सुख श्र कृतछता सूचक दो १98, डूकठ चिपय दोहा चौपाई 'मादि पूठांक चरन पकडना श्रार्तचचन बोलना शमाधार्थनाकी मुद्दा दो० १९२६, +.. » आतंदशामें भो होता है दो० १६७, चरणोमें पड़ना करुणरसकी पूर्णता '्यौर प्राथनाकी सीमा ७१ (७), रे » . को ददयसें घरनेरहे साव ७४ (१), शणध चरित देखकर मोद श्र सांगोसंगधवणसे मोहका नाश दण्ड सा७० वश (व), पे चरिन्रोरे रख श्रौर रग दो० ४४, ७३न७% चान्द्रायण श्तके भेद ७४ (9 ७); र६० चिच्दुद्धि ६८ (३), 1७९ (४ , ०७,८०० चित्र, विचित्र, भ्रति विचित्र दो० ४९, ७३ छा दिश्रकेतु उड़े (9 दे), रहरुनरे& से +*.. को नारदादिका समकाना ७४ (9-२), २४ है चित्रसम दैस्य ४७ (६), दस चिन्ता जीतेनी जलाती हैं ५८ (१), शक ++. में समय कांटे नहीं कटता १७९ (७), समर छुषि के नौ भंग ५० (१); 1४७ (१), ७७००८, ७६४ चुद समुदू संथनकी सामग्री १४० (५, ७्फ्क > में रुपकी तरमें जे सर 3». ऊ का वर्णन सरंगॉके समान कर भ के रन १४८ (न), दो १४म, ७७रे-७७४ छुबिसिन्धु ५० (१०९); के छल कया दि ३०४ (४-६), ४३.8 छुीर (कौर) नीरकी मीति दो० ५७,१४४ जतु ११५९ (9), ४९४ जगतजनक ६४ (५), १८७ जगतमें जो सत्यत्व मासता हैं दद्द जयत्‌का च्टी है श्रीरास का दै ११७ (७), प७्धे जगत्‌ है ही नहीं (अद्वैत सतमें) आ्ान्तिमात्र है, भ्रसद्प स्वप्नव््‌ मिथ्या दै 9१८ १), दे दौर मायाके संबघ्स दो सत दिखाये ११6 (१०३), व्यय » और घ्रद्मका झारीर दारोरी सम्यंघ दे... ,;.. +; त्रिकालमें रासरूपके झतिरिक्त हुछू सहीं है दो० ३१७, प्डछिडा




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