संस्कृत शब्दार्थ कौस्तुभ | Sanskrit - Shabdarth - Kaustubh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
63.53 MB
कुल पष्ठ :
1120
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झशि (६
परीक्षा या जाँच जैसी कि जानकी जी की लंका
में हुई थो ।--पवनः (पु०) ज्वालामुखी पदाढ़ ।
-मपुराणं ( न० ) १5 पुराणों में से एक । इसको
सर्वप्रथम '्रन्निदेव ने वशिष्ट जी को श्रवण कराया |
था; श्रतः वक्ता के नाम पर इसका नाम श्रर्नि-
पुराण पढ़ा ।--प्रतिप्ठा ( खरी० ) शरण को
विधानपूर्वक बेदी पर या कुण्ड में स्थापना;
विशेषकर विवाह के समय ।--घ्रवेश! ( पु०
-प्रयेशन ( न० ) किसी पत्िथ्रता का श्रपने
पति के साथ चिता में बैठ कर सती होना ।--
प्रसनरः ( पुन ) चकमक पत्थर, जिसका टकराने
से घ्राग ठत्पन्न होती है ।--वाहुर ( पु० ) घूम ।
( चुनो ) ।--र्भ (न०) १ कृत्तिका नचत्र का नाम ।
२ सुवर्ण ।--छु (न०) १ जल । २ सुवर्ण ।--भूः
( पुन ) श्रर्नि से उत्पत्र | कार्सिकेय का नाम ।
--पणिः (पुर) सूर्यफान्तमणि । चकमक पत्थर ।--
मंथः (सन्धी (पुन) मंघर्न ( सन्यनम् ) (न०) |
रगद से भाग उत्पन्न करना ।--मान्यं (न०) कद्ज़ि-
यत । कुपच | श्रनपंथ ।--सुखः (पु०9 १ देवता ।
२ साधारणतया प्राह्मण । ३. खट्मल् ।--प्रुखी
( खी० ) रसाईघर ।--युग ज्योतिपशाख के पाँच ,
पाँच वर्ष के १२ युगों में से एक युग का नाम । |
--रत्ताएं घग्निका घर में बनाये रखना । घुकने न
देना ।--रज्ः (पु०)-स्चसू (पु०) १ इन्द्रगोप
नामक कीड़ा । चोरबहूटी । २ श्रर्नि को शक्ति |
६ सुवर्ण 1-रोहिगी ( खी० ) रोगविशेष | !
इसमें श्रर्नि के समान सलकने हुए फफाले पढ़
जाते हैं ।--लिट (पु०) श्राग की लॉ की रंगत |
घोर उसके सफाय दे देख शुभाशुभ चतलाने की
विद्याविद्ोष |--लाका (पु० ) बह लोक
जिसमें श्रग्नि वास फरते ईं । यह लोक मेसुपबत
घ्य्रश्र
वाह (१०) १ धूम । घुआँ । २ घकरा।--विठ
(एु०)्स्निहोत्री ।-विंदया (खी ०) श्रस्निहोत्र 1 श्रस्ति
की उपासना की च्धि ।--विश्वरुप केतुतारों का
एक भेद ।--वेशः आयुर्वेद के एक आचार्य ।--वतः
(पुर) वेद की एक ऋचा का नाम ।-चीये ( न० ))
१ '्रिनि की शक्ति या पराक्रम (२) सुवर्ण ।--शरणं
(न०)--शाला (ख्री ) -शाले (न०) वह स्थान
या गृद़ जहाँ पवित्र अग्नि रखी जाय।--शिखः (पु०)
१ दीपक । २ आसिवाण । ३, कुपुम वा बरें का
फूल । ४ केसर ।--शिखें (न०) १ केसर । २ साना। .
-ाप्ठुननप्टुमनप्टोमस ( पुष ) यशविशेष ।
-संस्कारः (पु०) १ तपाना । २ जलाना । ३ शुद्धि
फे लिये श्रप्मिस्पर्शसंस्कार का विधान । ३ सतक
के शव को भर्म परने के लिये चिता पर श्रम
रखने की क्रिया । दाहकर्म । ४ श्राद्ध में पिरटवेदी
पर श्राग की चिनगारी फिराने की रीति ।--सखः,
सदायः (पु०) १ पवन । हवा २ जंगली कबूतर |
३ धूम। धुश्ना ।--साक्तिक (वि० या
( क्रि० वि० ) श्रम्ि देवता के सामने संपादित ।
श्रश्नि को साती करना ।- सात् ( क्रि० वि० )
श्राग में जलाया हुध्ा । भत्म किया हुआ ।--सेवन
श्ाग तापना ।--स्तुत यज्ञीय कर्म का वह भाग
जो एक दिन श्रधिक होता है।-स्तोमः (पु०) देखे
'्रम्िप्टोम'” । - प्वान्त! ( पु० दिव्य पितर ।
नित्य पितर । पितरों का एक मेद । श्रम, विययुत्
दि दिद्य ओ का जानने वाला ।--हैन्रे । न० )
एक यज्ञ । सायं प्रातः नियम से किये जाने वाला
धैदिक कर्म विशेष ।--होनिन्ू ( वि० ) भन्निहेत्र
करनेवाला |
घ्सीध्र ( पु० ) फत्विकू विशेष | इसका कार्य यज्ञ
में श्रग्नि की रक्षा काना है ।
के शिखर के नीचे है ।--लिट्भः--वंशाः श्री पोमीयम् ( न० ) श्रस्विसिम नामक यज्ञ की
( पु० ) देखों “श्रर्निकुल” ।--वघूर स्वाद, जो !
दल की पुत्री श्रीर श्रग्नि की खी हैं ।-वर्धक (वि०)
जठरास्नि को बढ़ाने वाली (दवा 1--वणाः हए०)
इचवाकुवंशी एक राजा का नाम । यह सुदशंन का
पुत्र घर रखु का पौत्र था ।--वल्लशा ( पु० ) १
साखू का पढ़ 1२ साल का गॉदि 1 ३ राल । धूप ।
हृवि यज्ञ विशेष । इस यज्ञ के देवता अग्नि श्रौर
साम माने गये हैं ।
द्म्र ( वि० ) 9 गे का भाग | श्रगला हिस्सा |
सिरा | नाक । २ स्पत्याजुसार मिच्षा का परिमाण,
जो मोर के ४प थ्रंढों या सोलह माशे के वरावर
हेता है । ३ अ्रयम ' ४ श्रेप्ट। प्रधान । - धनी
सं० श० कौ०--२
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