इसीका नाम दुनिया | Isika Naam Duniya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मालिक चिढ गए । मच्छा-नच्छा यद भी करो अपना व्याठ्यान । सहापुरुषप को किशनगज में और कोई आदमी नही मिला ठहरन क लिए दुलाल साहा का ही घर बचा था चमार कही का । अर सब पसे वी गर्मी हू पसे वी गर्मी । किशिनगज के लोगो को दिखलाया जा रहा है--देखो मरे पामे इतनी दौलत है । मैं क्या समझता नहीं हू बेवकूफ समझ रखा ह मुझे वहते कहते अपन कमरे म जाकर बिस्तरे पर पड गए । पड़ते ही हाफने लगे। बडा बहू चुपचाप बैठी थी । उनसे वाले ज़रा जगला तो बद करना बढी बहू कसी बदबू आ रही है घी की । ताक सडी जा रही हैं। लगता ह जेंस कही चमडा जल रहा है। बैसे आज सुबह स ही दुलाल साहा के घर उत्सव शुरू हो गया था । दुलाल साहा के घर इस तरह के उत्सव हुआ ही करत हैं। बडे लडक॑ वी शादी के वक्‍त भी किशनगज के हर जादमी को निमल्नित विया गया था । यह दुलाल साहा वा नियम है । दुलाल साहा कहता अर दा रोटी ही ता खाएगा उसम क्या गे कक दुलाल साहा की ताकीद थी कि धर पर आन वाले का वर्गर दाना खाए जाने नही दिया जाएगा। अतिथि नारायण होता हैं। घर आए खाली पेट विदा कर देने से नारायण असतुष्ट होते हैं । दिनो दिन भगवान और ब्राह्मणों के प्रति दुलान साहा की भक्ति बढती जा रही है। साथ ही वहू गोलमटात भी होता जा रहा हु । एक दिन था जब किशनगंज ने व्यापारियों के आसपास मडराता फिरा करता था । चुल्लू भर पानी पीकर पेट भरना पड़ता था । विशनगज के पुराने लगा स व दिन अपनी गाखो से देखे हैं। बट के पड के नीचे साया करता था । कितनी ही बार रास्ते के कुत्तो के साथ रात गुज़ारनी पडी है दुलाल साहा कद । सूख कया होती है तभी पता चला । घर-वार क्या हाता है यह भी पता चला। लेक्नि दुलाल साहा को आज भी वह सब याद हैं । दुवान साहा कहां वरता हैं याद नहीं रहेगा जो याद नहीं रखता वह महापापी है . इमीका नाम दुनिया / १७




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