सिंहल - विजय | Sinhan Vijay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.09 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दृश्य । प्रथम अंक । ्ु
और तरफ देख सकते हैं ? केवल इन दोनां आँखोंकी तरफ देखो,
फिर तुम्हें और कुछ देखनेकी आवश्यकता ही न. रह जायगी । जल्दी
यह समझना कठिन हैं कि ये दोनों अँखें कया हैं-मीन हैं, या खंजन
हैं, था हरिनी हैं । और फिर यह नाक । ऐसी नाक कहीं देखी है !
और हँसी ( हँसकर )--आह मैं मर गई !
सुरमा--वाह, रूपका इतना गुमान !
लीला--यह तो हुआ रूपका गुमान, ओर यदि ग़णका गुमान करूँ
तो तुम्हें माठूम हो जाय कि बात क्या है !
सुरमा--जरा ग़णके ग़ुमानका भी नमूना देखें ।
ठीला--हाँ हाँ देखो । पहले तो विद्या--मैं अनायास ही तुम्हें सब
कुछ सिखा सकती हूँ ।
सुरमा--हाँ विद्या है, यह ता में मानती हूँ ।
लीलठा--मानना ही पड़ेगा । ओर फिर इसके बाद गाना-( स्वर
ठीक करके गाती है । )
न
ठमरी 1
मेरी प्यारी वीण, ए प्यारे मम गान ।
कोमल स्वरसे व्यथा निकल कर, व्याकुछ करती प्राण ॥ मेरी० ॥
ण्की कथा सभी तारोंमें, प्पकी दुख सौ तान ।
मिला निरादामं कायरपन. औ हताशा-अपमान ॥ मेरी० ॥
जाग सके तो जग जा वीणे, और उच्च कर तान ।
भ्राण केंपाती में गाऊंगी-नये गीत, सच मान ॥ मेरी० ॥
तेरे सुरसे गला मिलाकर: कन्दन करूँ महान ।
नेत्रोंके जल मिल कर होवे, मन-दुखका अवसान ॥ मेरी० ॥
जाग सके तो जग कर बज उठ, ऊँचे झाब्द-विधान ।
नूतन स्वर गाकर, करना हैं मेरे साथ मिलान ॥ मेरी० ॥
(
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