सिंहल - विजय | Sinhan Vijay

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Sinhan Vijay by नाथूराम प्रेमी - Nathuram Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दृश्य । प्रथम अंक । ्ु और तरफ देख सकते हैं ? केवल इन दोनां आँखोंकी तरफ देखो, फिर तुम्हें और कुछ देखनेकी आवश्यकता ही न. रह जायगी । जल्दी यह समझना कठिन हैं कि ये दोनों अँखें कया हैं-मीन हैं, या खंजन हैं, था हरिनी हैं । और फिर यह नाक । ऐसी नाक कहीं देखी है ! और हँसी ( हँसकर )--आह मैं मर गई ! सुरमा--वाह, रूपका इतना गुमान ! लीला--यह तो हुआ रूपका गुमान, ओर यदि ग़णका गुमान करूँ तो तुम्हें माठूम हो जाय कि बात क्या है ! सुरमा--जरा ग़णके ग़ुमानका भी नमूना देखें । ठीला--हाँ हाँ देखो । पहले तो विद्या--मैं अनायास ही तुम्हें सब कुछ सिखा सकती हूँ । सुरमा--हाँ विद्या है, यह ता में मानती हूँ । लीलठा--मानना ही पड़ेगा । ओर फिर इसके बाद गाना-( स्वर ठीक करके गाती है । ) न ठमरी 1 मेरी प्यारी वीण, ए प्यारे मम गान । कोमल स्वरसे व्यथा निकल कर, व्याकुछ करती प्राण ॥ मेरी० ॥ ण्की कथा सभी तारोंमें, प्पकी दुख सौ तान । मिला निरादामं कायरपन. औ हताशा-अपमान ॥ मेरी० ॥ जाग सके तो जग जा वीणे, और उच्च कर तान । भ्राण केंपाती में गाऊंगी-नये गीत, सच मान ॥ मेरी० ॥ तेरे सुरसे गला मिलाकर: कन्दन करूँ महान । नेत्रोंके जल मिल कर होवे, मन-दुखका अवसान ॥ मेरी० ॥ जाग सके तो जग कर बज उठ, ऊँचे झाब्द-विधान । नूतन स्वर गाकर, करना हैं मेरे साथ मिलान ॥ मेरी० ॥ (




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