तुलसीदास रामचरितमानस भाग १ | Tulsidas Ramcharitmanas Vol.1

Tulsidas Ramcharitmanas Vol.1 by श्री सीताराम - Shri Sitaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ भावार्थ शास्रीयव्याख्या समेतम दोहा--श्री गुरुवरण सरोज रज निजमनु मुकुरु सुघारि | वरनरं रघुचर घिमल जसु जो दागऊ़ फल चारि 1 १ भाचाथे--गुरुके चरणकमलकी धूछको अपने मनोरूपी दर्पणम घारण करके आधोए अन्नपकरणकों निर्मल करते श्लीरघुवर रामके उज्ज्वल यदाका चर्णन करता हूं जो धर्म जर्थ काम मोक्ष चारो फटोका टेनिवाडा है । जिसके चरित्रसें पूर्ण पास्थानुयायित्ता हूं उसका यण उजबल हए । चिवेकबर्यचच्छिचसुरूकी घर्दना शा० व्या०-इस काण्डमे दद्रथ कफेयी कोसल्या सीता प्रमु भरत तापस आदि पात्ाफी -ग्रदनम सन्त्रणाओंका निरूपण कतेंव्य हे । डसके छिए विवेक एवं जास्वकी मर्यादा अपेध्ित है। गुर्तत्स्य विवेकबुत््यवच्छिन्नचेतन्यात्मक हैं। गुरुकें चरणं[की वन्दनाके बिना शुप्त मन््रणाए कचिके छदयसे प्रकट नहीं हो सकतीं ऐसा वालकाण्डमे निर्दिष्ट है-- श्री गुरुपद नख मनिगन जोती । समिरत दिव्य दि दिय होती | छह रामचरित मनिमानिक शुपुत प्रकट जे जेद्वि यानिक ॥ # ॥ चालकाड १ न ॥ आदि चौपाइयोंसे । उसीको ध्यानमे रखकर गोसाईजी गुरुजीकी वन्दना कर रद्द द। रामचरिद्रकी उपादेयता गुरुचरण सरोजकें रजसे मनोरुप दर्पणका सुधार करनेमे ही इ्-सिद्धि होती ह। इसका नैतिक अर्थ यह है कि विवेकबृत्यच्छिन्न गुरुकें चरणरजम मन प्रीतिमान्‌ हू तथा प्रमाणन्रयसम न्वित गुरूपदेशॉको सुनकर वह असदिग्ध हो गया है तो नका सुधार है। एस रे दो गया है. यहीं मनका सुधार है। ण्से सनकी सदायतासे दी रघुवरके विभिन्न चरिन्नात्मक_ शाखीय नीतिसिद्धान्तको प्रकाशित करना इष्ट है। यह प्रकाझान जनमात्रके दि उपेक्षणीय नहीं हैं। इसलिये कि वेद प्रथमत शाख्ोके द्वारा उप्र तन्त्वकी उपछढब्धिके साधनाकों समझाते है परन्तु असभावना व चिपरीतभावनाकी करुपना आनेपर उसके निरसनद्देतु साघुओंके छिए प्रकाशक प्रभु श्रीरासका चरित्र ह। चारों प्ररुपार्थों की-मिद्धि गोसाईजी कद्द रहे हैं कि रामायणमें & में प्रभु रामके रित्र चतुर्विध थक साधक हैं -- भु रामके बर्तेमान चरित्र चतुर्विध पुरुपा्थेके १ रामायणसे निर्दिष्ट कतेच्य रामचरित्रसे ् हे कि दर रस अं प्राणत सत्त्वणु णार यहदी धर्म है । घुप्राणित होनेके कारण सत्त्वगुणात्मक हे र अभुने उन्हीं चरित्रोंके माध्यससे भिन्नाजन झात्र ् ? रीनुविजय आदि इृष्टफलोपलब्धि थ अतः ये सभी अल्लुमान एवं श्रत्यक्षसे प्रमित अथरूप पुरुपाथके साधक एवं सुखसाध्य है । प्रकट की हैं । रे. निष्कासतासे ही कामनासिद्धि पूर्ण होती है च चिषयसें शा ग की हद सकामतामे रोगोंका शिकार के इस विषयमें राजनीतिशाख्र का कददना यह हैं कि शरीरकों उसकी कि कस पड़ता है। शरीरका ठाठन नहीं टेप होगा। निष्कामतासे मनोर॒थसिद्धिका हेतु ड़ दिया जाय वो त्याग दे कर यथाथेतया समझाया गया है। श्रीराम भरत लक्ष्मण एवं गा गग हैं। इसको रासायणमे हुए कामसिद्धि पूर्ण की हैं । अत मानसोक्त रासचरित्रमे कामकी साथकता चिकि सी शी




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