रति रानी | Rati Rani

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Rati Rani by श्री दुलारेलाल भार्गव - Shree Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१६ ) कुचच भी तथ्यांश है तो जिनके कंधों पर साहित्य का भार धौर उत्तरदायित्व है उनको अपनी वर्तसान संकचित नीति में साहित्य डी हित-दष्टि से उदारता का समावेश अवश्य करना योग्य है । हमें विश्वास है कि आज जब चारों आ्रोर देशन्सेवी सहाटुनादों का देशो- त्थान के हेनु प्राणपण से प्रयत्न हो रहा है उस शुभ झाशागभित काल में साहित्यिक दिगपोलों को भी उपनिषद्‌ के इस वाक्य की निस्संकोचरूपेण घोषणा कर देन्नी उचित है---उद्धातव्यं जायतब्यं प्राप्य वराजिबो घत रतिरानी का साहित्य में स्थान प्रकृत-प्रयास के उपलब्त में विनय करते हुए तथा रतिरानी को भेंट करते हुए हम पाठकों के प्रति _झपने मंतब्य को संक्षेप में प्रकट कर देना श्रपना कतव्य समभते हैं । रतिरानी के लेखकों ने उसे लिखने में श्र साहित्य-क्षेत्र में उपस्थित करने में झ्ालोचनात्मक दृष्टि को ही ग्रधानता दी है । इसे भेंट करते हुए कवि होने का श्रथवा निदिष्ट झादश के अनुसार समालोचक होने का वूथा गव वे नहीं करते । उन्होंने तो केवल इस रोचक झालोचना के नवीन सार का उद्घा- टन कर प्रतिभासंपन्न कवियों झऔर श्रा्योचकों के प्रति प्रयोगात्सक ( ०08] ) रूप में यह निवेदन करना चाहा है जिससे कि चर्तमान और भविष्य के उउउबन्त पथ-प्रदर्शक साहित्य-सेवक इस माग - को झादु्श तक पहुँचने का चे्टा करे । यों तो हमारे दिदी-साहित्य में अभी कई भंग रिक्त हैं जिनको केवल यथाथे प्रयास श्र रूचों चेष्टा के बल हमारे उत्साही दिद्वान्‌ परिपूस कर सकते हैं । हम कढाँ तक गिनाएँ झपने विविध झंगों और प्रमेदों के सहित नाटक-साहित्य गठप-साइित्य निबंध झ्रालोचना पत्र-साहिस्य जीवन-चरित्र ( पर झौर स्वल्निखित ) इत्यादि सभी सादित्यांगों को परिएूश करना हमारा घर्म है । इस सामाजिक युग में जब कि इम समस्त संसार की उत्कृष्ट




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