बगुला के पंख | Bagulaa Ke Pankh

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Bagulaa Ke Pankh by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बगुला के पंख श्ह जुगनु का कण्ठ सूख गया । उसने जीभ से होंठों को तर करते हुए कंहा नहीं थी सब भाई-बन्दों ने छीन ली । बहुत मामला-मुकदमा हुआ । चलो खेर सलला घर पर कौन-कौन है ? कोई नहीं । तो जोरू न जाता अलला मियां से नाता--यही बात है। शोभाराम ने हुंसकर कहा । जुगनू भी एक फीकी हंसी हंसकर चुप हो गया । खर तो अरब केसी नौकरी चाहते हो ? जैसी भी मिल जाए । पढ़े-लिखे क्या हो ? जुगनू फिर लड़खड़ाया । उसने कहा स्कूल पास किया है । क्या मैट्कि ? हां हां जुगन्न ने हकलाते हुए कहा । चलो बहुत है हमारे कई मिनिस्टर मैट्रिक भी नहीं हैं। कुछ काम-घन्घा भी जानते हो ? जुगन्न का मन हुआ कि कह दे खाना-पकाना जानता हूं । पर उसने मन को रोककर कहा जानता तो नहीं हूं । पर मैं सब तरह की सख्त मेहनत करने को तेयार हूं । हि यह तो मुंशी बहुत भ्रच्छी बात है । अच्छा सुनो मैं प्रांतीय कांग्रेस का जनरल सेक्रेटरी हूं । क्यों न तुम मेरे सहायक बन जाश्नो । भ्रभी तुम्हें पचहत्तर रुपया मासिक मिलेगा । हमारे साथ यहीं रहना-खाना । तकलीफ न होगी । मुभे एक भरोसे के झ्रादमी की बड़ी सख्त जरूरत है । भाई साहब मैं झापकी सेवा में जान लड़ा दूंगा । बस तो यही ठीक रहा । कल से तुम दफ्तर चलो । ऐसा कुछ ज्यादा काम नहीं है । ज्यादा होगा भी तो क्या ? झाप इत्मीनान रखिए । जुगतु ने श्राइवासन दिया । इसके बाद बस थोड़ी देर गप-दप करके शोभाराम ने कहा अच्छा अब सोश्नो मुंशी तुम्हारे लिए वह बाएं किनारे वाला कमरा ठीक करा दिया गया है ।




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