श्री पंडित मदन मोहन मालवीय के लेख और भाषण | Sri Pandit Madan Mohan Malviya Ke Lekh Aur Bhashan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30.66 MB
कुल पष्ठ :
345
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १२ ) विठक्षण माछा है जिसमें हिरण्यगभ श्रह्मा और ऋषियों ने जिन शब्दात्म८ प्रतीकों का निर्माण किया था उन्हें हम बारम्बार पाते रे । यदि एक सहख्ननाः की भी पूरी व्याख्या की जाय तो मानों हम अपने पूरे धम॑ और दशंन की व्याख्य ही करने लगेंगे । शिव के ज्योतिर्लिंग का क्या तत्त्व है ? उनका नन्दी बूष कौन है ? उन ब्यम्बक क्यों कहा गया है? स्वामी कार्तिकेय या स्कन्द का स्वरूप क्या हे तारकासुर कौन है ? शिव की त्रिपुरारि संज्ञा का क्या अथ है ? उनके ऊप जल की बूंदों के अभिषेक का क्या अथ है? पंचमुख क्या दे ? उन्हें मूर्ति क्यों कहा जाता है ? सनातनधमं अपनी महती परम्परा में वेदों औ पुराणों के द्वारा इन प्रश्नों का उचित समाधान करता है। यह जो आकाश रे महदान् भारवरण्योति सूय हम देखते हैं यही तो भगवान् का ज्योतिर्लिंग रूप है यह एक सूय॑ कया है ? कोटि सूर्यों की परम्परा में पड़ी एक कड़ी है। इनमे आदि और अन्त की श्द्डढा का कोई परिचय न दर्शन को प्राप्त हुआ न विज्ञार को । एक ब्रह्मा की युक्ति है दूसरी विष्णु की। वैज्ञानिक त्रह्मा की तरह अपन दूरवीक्षण यन्त्रों से ज्योति के इस सहान् स्तस्भ का आरम्भ जानना चाहते हैं पर उसका ज्ञान अशक्य है। अतएव असत्य का आश्रय लेकर कुछ ऐसा ब्योंत रचना पड़ता है मानों हमने प्रकाश वर्षों की बड़ी-बड़ी संख्याओं का आश्रय ठेकर ज्योति स्तम्भ का स्वरूप या इयत्ता जान ढछी हो। दूसरी ओर विष्णु का मार्ग है। उसमें यह पू्व से ही बिदित है कि इस त्रह्म रूपी महदाज्योति का कोई अन्त नहीं है। अनन्त को ही पूर्ण कहते हैं। जो पूरां है उसमें एक-दो-तीन संख्य। वाले गणित की दाछ नहीं गलती । आचीन ऋषियों ने इस एक सूर्य को देखकर सहस्र सूय और कोटि सूर्यों की और अनन्त के एक-एक रोस में कोटि-कोटि ब्रह्माण्डों की कल्पना की और प्रश्न किया कि यह सूये किसकी ज्योति है (कि स्वित सूय समं ज्योतिश) ?. इसके उत्तर में यही कहा--श्रह्म सूय॑ समं ज्योति । यह जो महान् देव के अधव्यक्त स्वरूप का एक ज्योतिर्बिन्दु है यह ब्रह्म हो तो है। पर इसे कौन जानता है? और कौन कह पाया है? (को अद्ध वेदि के इहि अ्रवोचत् ) । जिसे था नदी चूष कहते हैं वही तो श्रानन्द का प्रतीक है । ननन््दी और आनन्द पर्योय हैं। आनन्द ब्रह्म का ही रूप है। उसीसे सब प्राणी जीवित रहते हैं. और उसी की अभिलाषा करते हैं। आनन्द का ही एक प्रभावशाली रूप काम है। काम की संज्ञा चरूष है। रेत वर्षण द्वारा प्रजा का उत्पादन और आनन्द को अनुभूति होती हे। उसी बरूष-धर्म से सृष्टि की सत्ता है। वेदों में सूय को ही बरूष कहा गया हे क्योंकि वह युलोक से अपनी रश्मियों का विकिरण करके प्रतिक्षण प्रथ्वी को गर्मित करता रहता है। भगवान् शिव अ्यम्बक भी कह्दे गये हैं। ऋग्वेद में ही यह संज्ञा आती है। तीन जिसकी मातायें हैं या
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