हिन्दू समाज का नव-निर्माण | Hindu Samaj Ka Nav-nirman

Hindu Samaj Ka Nav-nirman by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न और ऐसे हो कुछ वृक्ष भी बनाये गये हैं और उनमें नवकाशी का काम इतनी उत्तमता और शुद्धता से बनाया गया है कि वह चहुत प्रशंसनीय है। मनुप्य की मूर्तियाँ भी यद्यवि आजकल की सुन्दरता से भिरन हैं, परन्तु दड़ी स्वाभाविक हैं। जहाँ पर कई मूर्तियों का समूद है वहाँ पर उनका भाव अदभुत सर- लता के साथ प्रकट कियां गया है । रेलफ को नाई एक सच्चे मोर कार्योपयोगी शिल्प को भांति कदाचित्‌ इससे वढ़कर झौर कोई काम नहीं पाया गया 1” प्रर्यात रामेश्वर के दिश[ल मन्दिर के सम्बन्ध में डावटर फर्म्यूतन कहते हैं--“कोई नक्काशी उस विचार को नहीं प्रकट कर सकती जो कि लगातार ७०० फोट को ऊँचाई तक इस परिश्रम की कारीगरी को देखने से होती है । हमारे कोई गि्जें ४०० फीट से ऊँचे नहीं हैं बर सेटपीटर के गिजें का मध्य भाग भी द्वारे से लेकर परूजास्पान तक केवल ६०० फीट ऊचा है । यहाँ बगल के लम्बे दालान ७०० फोट ऊँचे हैं । वे उन फंले हुए पतले दालानों से जुड़े हुए हैं जिनका काम स्वयं उनकी हो भाँति सुन्दर और उत्तम है। इनमें भिनन-भिसन उपायों और प्रकाश के राम्दग्प से ऐसा प्रभाव उस होता है जो कि निस्सन्देहू भारतवर्ष में और कहीं नहीं पाया जाता । यहाँ हमें ४००० फीट तक के लम्दे दालान मिलने हैं जिनके दोनों ओर बड़े से कड़े पत्यरों पर नवकाशों की गई है । यहाँ पर परिश्रम की जो अधिकता देखने में आती हैं उसका प्रभाव नवकाशी के गुणों को अपेशा बहुत अधिक होता है बौर वह एक प्रदार की मनोहारता ओर अदुमुदता को लिये हुए एक ऐसा प्रमाव उत्पन्न करता है जो कि भारतवर्ष के किसो मन्दिर में नहों पाया जाता ।”




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