मणि रत्न माला | Mani Ratna Mala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) में बैठना शान है, उससें बैठ कर फिर चलना नहीं दोता इसी प्रकार परम के माद रूप जद्दाज़ में बैठने के पश्चात, हमकों स्वयं कुछ पतेन्य नहीं रदना । जो चुः्ध कर्तव्य है वदद जहाज का और मल्लाद का ही द:। चद्द कत्तच्य भी ज्ञान की चष्टि में दी है। नहा रूपी जहाज व्यापक होने से परमानन्द स्वरूप हैं, क्ेन्य शून्य है । ऊपर दर्शा हुई सूदमता को समकना चाहिये कि जैसे जद्दाज़ समुद्र से पार नहीं जाता इसी प्रकार विश्वेश का पाद रूप जद्दाज़ भी संसार से पार नहीं जाता । विश्वेश का पाद संसारी लय में है किन्तु उसमें दतनी विशेषता है कि उसका संसारी भाव. निशृत्त होकर तत्त्व दी रद जाता है वदद ही तत्त्व रूप स्थिति वास्तविक पार दोना है जो शुरु कृपा से प्राप्त होता है । मंद अधिकारियों के निमित्त पुराणोक्त उपासना आदिक शन्तःफरण की शुद्धि का हेतु होता है। जो सकाम किये जांयगे तो शुभ कर्मों का पल भौतिक सुख की प्राप्ति होगी शऔर वे ही कम निप्काम करने से अन्तःकरण की शुद्धि होती है। निपिद्ध कर्म से विद्वित सकाम कर्म भी 'च्छा है श्रौर निप्काम फर्म उससे भी श्रच्छा है। उपासना का दूसरा नाम भक्ति है। श्रवण, कीतन, स्मरण, पाद सेवन, र्चन, चन्दन, दास भाव, सखा भाव श्र छात्म समपंण ये नचघा भक्ति कही जाती है । यह सगुण की द्ोतती हैं। किसी भी सगुश-साकार इंश्वर में, प्रतिमा में, श्रधवा शुरु सें उसका उपयोग होता है । वह भी फल




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