वेदांत दर्शन (ब्रह्म सूत्र) | Vedant Darshan (brahm Sutra)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( र५ *) , कु विषय ढ्ह १७-१९... इन्दियोंसि मुख्य झाणकी मिन्नता र२१-२२७ ० ब्रह्मसे ही नाम-रुपकी रवनाका कथन २२७ 1 सब तसवोका मिश्रण भी पृथ्वी श्रादिकी अधिकदासे शेर 1 उनके पृथक-पृथक्‌ श * २९७-२२८ तीसरा अध्याय पहला पाद शरीरके बीजभूत सुक्ष्म तर्वीसहित जीवके देह्टान्तरमे गमव- का कथन, 'पाँचवीं श्राहृतिमें जल पुरुषरूप हो जाता है! श्र तिक इस वचनपर विचार, उस जलमें सभी तर्वोक कथन झौर अझन्यान्य विसोघोका परिहार ” २२९-२३४ स्वर्गमें गये हुए पुरुषकों देवताओका श्रप्त बताना श्ौपचारिक है, जीव स्वर्गसे कमसस्कारोको साथ लेकर लौटता है, श्र तिमें “चरण” दाव्द कर्मसस्कारोका उपलबक्षणु श्रौर पाप- पुण्यका बो घक है, इसका उपपादन ... ””” २३५-रेप पापी जीव यमराजकी आज्ञासे नरकमें यातना भोगते है, नह्दीं जाते, के तिसें भी समस्त शुभकर्सियोक स्वर्गगमतकी वात झायी है; इसका वर्णन. “”“'२३८-२४१ यम-यततना छान्दोग्यवर्णित तीसरी गतिसे सिन्न एवं भ्रथम चौथी गति है,इसका वर्शन तथा स्वेदज जीवोका उद्धिलमें श्रत्तमाव २४१-२४३ स्वगसे लींटे हुए जीव किस प्रकार झाकाश, वायु ; धूम, मेष, | घान, स्थित होते हुए क्रमश. गर्भमें भ्राते हैं, इसका स्पष्ट वर्णन इ-र५ ७-१९ २-१७ श८-र१ रर-र७ दूसरा प्राद स्वप्न मायामात्र और शुभाशुभका सुचक हैं, भगवाद्‌ ही जीवकों स्वप्में नियुक्त करते है, जीवमें ईर्वरसरश गुण तिरोहित है, परमात्माक ध्यानसे प्रकट होते है, उसके श्रनादि वन्घन भर सोक्ष भी परमात्माक सकादासे है तथा जीवके दिव्य युणोका तिंरोभाय देहके सम्बन्धसे है रई-र५० सुपुप्तिकालमे जोवकी नाडियोक भूलभूत हृदयमें स्थिति, उस समय उसे परमात्मामें स्थिति बतानेका रहस्य, चुपुप्तिसे पुन उसी जीवक जाग होनेका कथन तथा सून्छकालसें झधुरी सुपुप्तावस्थाका प्रत्तिपादन दशक * रुप०-र५३ छ-१०




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