विष्णु पुराण | Vishnu Puran Part 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
143.4 MB
कुल पष्ठ :
504
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जन्म:-
20 सितंबर 1911, आँवल खेड़ा , आगरा, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु :-
2 जून 1990 (आयु 78 वर्ष) , हरिद्वार, भारत
अन्य नाम :-
श्री राम मत, गुरुदेव, वेदमूर्ति, आचार्य, युग ऋषि, तपोनिष्ठ, गुरुजी
आचार्य श्रीराम शर्मा जी को अखिल विश्व गायत्री परिवार (AWGP) के संस्थापक और संरक्षक के रूप में जाना जाता है |
गृहनगर :- आंवल खेड़ा , आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
पत्नी :- भगवती देवी शर्मा
श्रीराम शर्मा (20 सितंबर 1911– 2 जून 1990) एक समाज सुधारक, एक दार्शनिक, और "ऑल वर्ल्ड गायत्री परिवार" के संस्थापक थे, जिसका मुख्यालय शांतिकुंज, हरिद्वार, भारत में है। उन्हें गायत्री प
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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श्रीविष्णु पुराण
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जंगूविष्यतीति 1१४। अत्याक्त जगत्परित्राणाय च भगवतोघ्त्र
शरीरग्रहणमित्याकर्ण्ये भगवानाहात्पैरेव दिनैविनड क्षयन्तीति
1१४) कर
अत्रान्तरे च सगरों ह्ममेधमारभत ।१६। तस्य च पुदौरधि-
छितमस्याइवं कोब्प्यपहृत्य भुवो बिल प्रविवेश 1१9 ततस्ततल-
याश्रादवखुरगति निर्वन्धनावनी मेकैकोयोजन च्तुः।१८। पाताले
चाइव परिश्रमन्त॑ तमबनीपतितनयास्ते दहु:। १४। नातिदूरेध्वः
स्थित च भगवन्तमपघने शरत्कालेध्कंमिव तेजोभिरनवरतमूध्वं
मधइवाशेषदिशशश्ोद्धासयमानं हयहर््तौर कपिल्षिमपरयन
रण एन की .
उस असमंजसके चरित्रका अनुगमन करने वाले सा४ हजार सगर
पुत्रों ने विश्व से यज्ञादि सन्माग को उच्छेद किया, तब सकल विद्याओं
के ज्ञाता भगवादु के अंशभूद श्री कपिलजी को देवताओं ने प्रणाम कर र्
उब सगर-पुत्रों के विषय में निवेदन किया । १२। हे भगवन् ! सगर के.
पह सभी पुत्र असमंजस के चरित्रका अनुकरण करने वाले हुए हैं 1१ ३।
इन सबके सन्माग' के विपरीत चलने से यह जगत किस दशा को प्राप्त
होगा ? 1१४ हे भगवन् आपने दोनों की रक्षा करने के लिए ही
यह देह घारण किया है । यह बात सुनकर कपिलजी बोले-इन सब
का कुछ ही दिनों में नाश होता है 1१५1 . इसी अवसर पर महाराज
सगर ने अश्वमेघका अनुष्ठान आरम्भ किया 1 (६। 1१६। तब उसके पुत्रों
द्वारा सुरक्षित अश्व का अपहरण करके कोंई पृथिवी में प्रविष्ट होगया
_... 1१७) तब उस अश्व के खुर-चिन्हों का अनुसरण करते हुए सगर-पुत्रों
. बसे प्रत्येक ने चार-चार यौजन भूमि खोद डाली ।१८। और पाताल
ले पहुँच कर उन्होंने अश्व को बिचरण करते हुए देखा ।1१४। उसके
निकेद ही मेघ आवरण से रहित शरदाकालीन सुय के समान अपनेतेज
से पा दू्भाओं को प्रकाशमय करने वाले महर्षि कपिल को अश्वहर्ता
न
कु द
ठे हुए देखा 1२०)
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