नवीन समाज व्यवस्था में दान और दया | Naveen Samaj Vyavastha Me Daan Or Daya

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Naveen Samaj Vyavastha Me Daan Or Daya by मुनि श्री नगराज जी - Muni Shri Nagraj Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६ ) कर समसाजमें अकसंख्यता व बेकारी फेला रहे हैं इसका भी एक हद्य- द्वावी इतिहास चनता है । यहाँ तक कि पेशेवर मिखसंगे स्वस्थ बालकों को विकृतांग कर उनसे अपनी भिखसंगीका व्यवसाय चलबवाते हैं । ऐसे झनेकों उदाहरण प्रत्यक्त अनुभव में श्राये हैं । विगत वर्षकी घटना है देहलीमें जब हम थे उसी समय एक जैन तेरापन्थी दम्पती लगभग १०-१२ वषके एक बालककों साथ लिए दशनाथ आये । उन्होंने बताया कि यह लड़का गेरक वस्त्रघारी भिख- संगोंकि चंगुलमें था । यह वड़ा दुःखी था । कल हमस लोगों ने इसे वहाँ से निकाला । पूछ जानेपर उस बालक ने हमें अपना जीवन-चृत्तान्त बताया । उसने कहा--में दक्षिण में बंगलोरके पास किसी एक श्रासमें रहनेवाले सिल-मजदूर का वालक हूँ । एक दिन जब में घरसे घ्रूसनेके लिए निकला था तब कुछ गेरुक वस्त्रघारी वावा लोग. मुझे सिले ओर मुके मिठाई फल आदि खिलाये । फिरे वे मुझे अपने साथ चलनेका मर करने लगे और कहा-- तुम्दें दिरली ले चलेंगे और वहाँ सिंनेसा व श्ौर भी बहुत सारी चीजें दिखलायेंगे । वापस यहाँ लाकर छोड़ देंगे । में उनके भुलावे में आ गया । में बहुत दिनों तक उनके साथ भटकता रहा । गेसक वस्त्र पहना कर वे भी मुझे श्रपने साथ रखते और भीख समाँगनेका तरीका सिखलाते । एक दिन एक सुनसान स्थानसें उन्होंने जबरदस्ती मेरी जीभमें लोहेका बढ़ा काँटा आरपार कर दिया । इससे में तीन दिन तक बेद्दोश-सा पढ़ा रहा । बुखार भी हु था। उसके वाद जीभमें वह छंद स्थायीरूपसे वन गया श्रौर ऊपरकी ब्याधि धीरे-धीरे सिट चली । उसके वाद शहरमें जाते समग्र मेरी जीभके उस एमेए समा मृत्ता जे लोए सन्ति साहुणो । विहूंगमा व पुप्फेयु दानभत्तेसणे रया ॥३॥ महुकारसभा बुद्धा जे भवन्ति अणिस्सिया | नाणापिण्डरया दन्ता तेण बुच्चन्ति साहुणो ॥५॥। दद०-झ० १




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