कल्याण भाग 8 | Kalyan Volume-8
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.28 MB
कुल पष्ठ :
52
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द
उत्तरखण्ड
# यमराजकी आराधना और गोपीचन्दनका माददात्म्य %
. दे,
विष्णुदेदोद्ध वे... देवि... महापापापहारिणि ।
सवपाप॑ हर त्व॑ ये सर्वोषधि नमोडझ्स्तु ते ॥
(६८ । इडन--र७)
प्वसुन्घरे ! तुम्हारे ऊपर अश्व और रथ चला करते हैं
तथा चामन अवतारके समय भगवान् विष्णुने भी तुम्हें अपने
चरणोंसे नापा था । सृत्तिके ! मैंने पूर्वजन्ममें जो पाप सब्चित ,
किया है) मेरा बह सारा पाप ठम हर लो । तुम्हारे द्वारा
पापका नाश दो जानेपर मनुष्य सब पार्षोसे मुक्त हो जाता
है । तिल काशीमें उत्पन्न हुए हैं तथा वे भगवान् विष्णुके
स्वरूप हैं । तिलमिश्रित जलके द्वारा स्नान करनेपर भगवान्
गोविन्द सब पा्पोंका नाश कर देते हैं। देवी सर्वोषधि !
तुम भगवान् विष्णुके देहसे प्रकट हुई तथा महान् पापोंका
अपहरण करनेवाली हो । तुम्हें नमस्कार है । तुम मेरे सारे
पाप हर लो ।?.
इस प्रकार मरत्तिका आदिके द्वारा स्नान करके सिरपर
दुलसीदल धारण कर तुलसीका नाम लेते हुए स्नान करे ।
यह स्नान ऋषियोंद्वारा बताया गया है । इसे विधिपूर्वक
करना चाहिये । इस तरह स्नान करनेके पश्चात् जलसे
बाहर निकलकर दो शुद्ध वस्र धारण करे । फिर देवताओं
और पितरोंका तर्पण करके श्रीविष्णुका पूजन करे । उसकी
विधि इस प्रकार है । पहले एक कलडकी, जो 'फूटा-हूटा न
हो; स्थापना करे । उसमें पश्चपछव और पश्चरत्त डाल दे ।
फिर दिव्य माला पहनाकर. उस कलशकों गन्घधसे सुवासित
करे । कलश्म जल भर दे ओर उसमें द्रव्य डालकर उसके
ऊपर तंत्रिका पात्र रख दे । इसके वाद उस पान्रमें देवाधिदेव
तपोनिधि भगवान् श्रीधरकी स्थापना करके पूर्वोक्त विधिसे
पूजा करे । फिर मिट्टी और गोबर आदिसे सुन्दर
मण्डल बनावे । सफेद और धुे हुए चावलोंकों पानीमें पीस-
कर उसके द्वारा मण्डछठका संस्कार करे । तत्पश्चात् दाथ-पर
आदि अज्ञौँसे युक्त धर्मराजका स्वरूप बनावे और उसके
गे तबिकी वैतरणी नदी स्थापित करके उसकी पूजा करे ।
उसके बाद प्रथक् आवाहन आदि करके यमराजकी विधिवत्
पूजा करे । ः
पहले भगवान् विष्णुसे इस प्रकार प्रार्थना क्रे--महाभाग
केद्ाव !' मैं विश्वरूपी देवेश्वर यमका आवाइन. करता
हूँ । आप यहाँ पघारें और समीपमें निवास करें ।
लदमीकान्त | हरे | यह आसनसहित पाद्य आपकी सेवामें
ना
समर्पित है । प्रभो ! विद्ंवका प्राणिससुदाय आपका स्वरूप
है। आपको नमस्कार है। आप प्रतिदिन मुझपर कृपा
कीजिये ।” इस प्रकार प्रार्थना करके “भूतिदाय नमः?
इस सन्न्रके द्वारा भगवान् विष्णुके चरणोंका; “अशोकाय
नमः? से घुटनॉका; “'दिवाय नमःश्से जाँघोंका; “विश्वमूर्त॑ये
नमः से कटिभागका; “कन्दर्पाय नमः”से लिद्जका; “आदित्याय
नम; ?से अण्डकोषका; *दामोदराय नमः से उदरका; “्वासुदेवाय
नमः”से स्तनोंका ५ “श्रीघराय नमः से सुखका; “केशवाय नमः ”से
केशोंका; 'शाजंघराय नमःश्से पीठका; “वरदाय नमः”से
पुनः चरणोंका; 'दाज़पाणये नमः”; चक्रपाणये सम
'असिपाणये नमः; 'गदापाणये नमः” और 'परझुपाणये
नमःर--इन नाममस्त्रॉद्दरा क्रमशः शा्ऑ) चक्र; खड़) गदा
तथा परझुका तथा 'सर्वात्मने नमः” इस मन्त्रके द्वारा मस्तकका
ध्यान करे । इसके बाद यों कहे--'मैं समस्त पार्पोकी राशिका
नाश करनेके लिये मत्स्य; कच्छप; बराह; चसिंद; वामन;
परझुराम; श्रीराम; श्रीकृष्ण) बुद्ध तथा कल्किका पूजन करता
हूँ, भगवनू ! इन अवतारोंके रूपमें आपको नमस्कार है ।
बारंबार नमस्कार है ।” इन सभी मन्त्रौंके द्वारा श्रीविष्णुका
ध्यान करके उनका पूजन करे ।#
तत्पश्चात् निम्नाडित नाममन्त्रीके द्वारा भगवान्
धघर्मराजका पूजन करना चाहिये--
घर्मराज नमस्तेडस्तु धर्मराज नमोस्तु ते ।
दक्षिणादयाय ते तुभ्यं॑ नमो. महिघवाहन ॥
-
* आवाइयामि देवेश॑ यम॑ वे विश्वरूपिणम् ।
इददास्येहि मद्दाभाग सांनिष्य॑ कुर केशव ॥
इद॑ पाय॑ श्रियः कान्त सोपविष॑ हरे प्रभो ।
विद्वौघाय नमों नित्यं कृपा छुरू ममोपरि ॥
भूतिदाय नमः पादौ अोकाय व. जालुनी ।
उरू नमः शिवायेति विद्वमू्तें नमः कटिंसू ॥
कन्दर्पाय नमो. मेठद्मादित्याय फल तथा 1
दामोदराय जठरं॑ वासुदेवाय वें स्तनौ ॥
श्रीघराय मुखं केशान् केशवायेति वे नमः |
एष्ठं. शाजञंधरायेति चरणी वरदाय च ॥
स्वनास्रा शक्नचक्रासिंगदापरशुपाणये ।
सर्वात्मने नमस्तुस्य॑ दर इत्यभिधीयते ॥
मत्स्य कूमें च॒वारादं चारसिंहं व वामनस् ।
रामं राम च कृष्ण च बुद्ध कल्कि नमोस्तु ते ॥
सर्वपापौघनाशार्थ.. पूजयामिं. नमो. नमः ।
एमिय्य सबंझो मन्त्रेविंष्णुं ध्यात्वा प्रपूजयेत् ॥
(दूट | उ५- ५२)
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