कल्याण भाग 8 | Kalyan Volume-8

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द उत्तरखण्ड # यमराजकी आराधना और गोपीचन्दनका माददात्म्य % . दे, विष्णुदेदोद्ध वे... देवि... महापापापहारिणि । सवपाप॑ हर त्व॑ ये सर्वोषधि नमोडझ्स्तु ते ॥ (६८ । इडन--र७) प्वसुन्घरे ! तुम्हारे ऊपर अश्व और रथ चला करते हैं तथा चामन अवतारके समय भगवान्‌ विष्णुने भी तुम्हें अपने चरणोंसे नापा था । सृत्तिके ! मैंने पूर्वजन्ममें जो पाप सब्चित , किया है) मेरा बह सारा पाप ठम हर लो । तुम्हारे द्वारा पापका नाश दो जानेपर मनुष्य सब पार्षोसे मुक्त हो जाता है । तिल काशीमें उत्पन्न हुए हैं तथा वे भगवान्‌ विष्णुके स्वरूप हैं । तिलमिश्रित जलके द्वारा स्नान करनेपर भगवान्‌ गोविन्द सब पा्पोंका नाश कर देते हैं। देवी सर्वोषधि ! तुम भगवान्‌ विष्णुके देहसे प्रकट हुई तथा महान्‌ पापोंका अपहरण करनेवाली हो । तुम्हें नमस्कार है । तुम मेरे सारे पाप हर लो ।?. इस प्रकार मरत्तिका आदिके द्वारा स्नान करके सिरपर दुलसीदल धारण कर तुलसीका नाम लेते हुए स्नान करे । यह स्नान ऋषियोंद्वारा बताया गया है । इसे विधिपूर्वक करना चाहिये । इस तरह स्नान करनेके पश्चात्‌ जलसे बाहर निकलकर दो शुद्ध वस्र धारण करे । फिर देवताओं और पितरोंका तर्पण करके श्रीविष्णुका पूजन करे । उसकी विधि इस प्रकार है । पहले एक कलडकी, जो 'फूटा-हूटा न हो; स्थापना करे । उसमें पश्चपछव और पश्चरत्त डाल दे । फिर दिव्य माला पहनाकर. उस कलशकों गन्घधसे सुवासित करे । कलश्म जल भर दे ओर उसमें द्रव्य डालकर उसके ऊपर तंत्रिका पात्र रख दे । इसके वाद उस पान्रमें देवाधिदेव तपोनिधि भगवान्‌ श्रीधरकी स्थापना करके पूर्वोक्त विधिसे पूजा करे । फिर मिट्टी और गोबर आदिसे सुन्दर मण्डल बनावे । सफेद और धुे हुए चावलोंकों पानीमें पीस- कर उसके द्वारा मण्डछठका संस्कार करे । तत्पश्चात्‌ दाथ-पर आदि अज्ञौँसे युक्त धर्मराजका स्वरूप बनावे और उसके गे तबिकी वैतरणी नदी स्थापित करके उसकी पूजा करे । उसके बाद प्रथक्‌ आवाहन आदि करके यमराजकी विधिवत्‌ पूजा करे । ः पहले भगवान्‌ विष्णुसे इस प्रकार प्रार्थना क्रे--महाभाग केद्ाव !' मैं विश्वरूपी देवेश्वर यमका आवाइन. करता हूँ । आप यहाँ पघारें और समीपमें निवास करें । लदमीकान्त | हरे | यह आसनसहित पाद्य आपकी सेवामें ना समर्पित है । प्रभो ! विद्ंवका प्राणिससुदाय आपका स्वरूप है। आपको नमस्कार है। आप प्रतिदिन मुझपर कृपा कीजिये ।” इस प्रकार प्रार्थना करके “भूतिदाय नमः? इस सन्न्रके द्वारा भगवान्‌ विष्णुके चरणोंका; “अशोकाय नमः? से घुटनॉका; “'दिवाय नमःश्से जाँघोंका; “विश्वमूर्त॑ये नमः से कटिभागका; “कन्दर्पाय नमः”से लिद्जका; “आदित्याय नम; ?से अण्डकोषका; *दामोदराय नमः से उदरका; “्वासुदेवाय नमः”से स्तनोंका ५ “श्रीघराय नमः से सुखका; “केशवाय नमः ”से केशोंका; 'शाजंघराय नमःश्से पीठका; “वरदाय नमः”से पुनः चरणोंका; 'दाज़पाणये नमः”; चक्रपाणये सम 'असिपाणये नमः; 'गदापाणये नमः” और 'परझुपाणये नमःर--इन नाममस्त्रॉद्दरा क्रमशः शा्ऑ) चक्र; खड़) गदा तथा परझुका तथा 'सर्वात्मने नमः” इस मन्त्रके द्वारा मस्तकका ध्यान करे । इसके बाद यों कहे--'मैं समस्त पार्पोकी राशिका नाश करनेके लिये मत्स्य; कच्छप; बराह; चसिंद; वामन; परझुराम; श्रीराम; श्रीकृष्ण) बुद्ध तथा कल्किका पूजन करता हूँ, भगवनू ! इन अवतारोंके रूपमें आपको नमस्कार है । बारंबार नमस्कार है ।” इन सभी मन्त्रौंके द्वारा श्रीविष्णुका ध्यान करके उनका पूजन करे ।# तत्पश्चात्‌ निम्नाडित नाममन्त्रीके द्वारा भगवान्‌ धघर्मराजका पूजन करना चाहिये-- घर्मराज नमस्तेडस्तु धर्मराज नमोस्तु ते । दक्षिणादयाय ते तुभ्यं॑ नमो. महिघवाहन ॥ - * आवाइयामि देवेश॑ यम॑ वे विश्वरूपिणम्‌ । इददास्येहि मद्दाभाग सांनिष्य॑ कुर केशव ॥ इद॑ पाय॑ श्रियः कान्त सोपविष॑ हरे प्रभो । विद्वौघाय नमों नित्यं कृपा छुरू ममोपरि ॥ भूतिदाय नमः पादौ अोकाय व. जालुनी । उरू नमः शिवायेति विद्वमू्तें नमः कटिंसू ॥ कन्दर्पाय नमो. मेठद्मादित्याय फल तथा 1 दामोदराय जठरं॑ वासुदेवाय वें स्तनौ ॥ श्रीघराय मुखं केशान्‌ केशवायेति वे नमः | एष्ठं. शाजञंधरायेति चरणी वरदाय च ॥ स्वनास्रा शक्नचक्रासिंगदापरशुपाणये । सर्वात्मने नमस्तुस्य॑ दर इत्यभिधीयते ॥ मत्स्य कूमें च॒वारादं चारसिंहं व वामनस्‌ । रामं राम च कृष्ण च बुद्ध कल्कि नमोस्तु ते ॥ सर्वपापौघनाशार्थ.. पूजयामिं. नमो. नमः । एमिय्य सबंझो मन्त्रेविंष्णुं ध्यात्वा प्रपूजयेत्‌ ॥ (दूट | उ५- ५२)




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