टोड लिखित राजस्थान का इतिहास | Tod Likhit Rajasthan Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ लेने का कार्य बड़ी सावधानी का होता है । श्रगर ऐसा न किया गया तो इतिहास इति कविताओओ श्रौर कहानियों के रूप में रह जाता है । कक प्राचीन काल में कवियों ने इतिहासकारो के स्थान की प्रति की थी । परन्तु उनमें थी । वे त्रुटियाँ श्रुतिशयोक्ति तक ही सीमित न थी । उनमे खुशामद की मनोवृति भी थ की प्रसन्नता एवम्‌ ्रप्रसन्नता--दोनों ही इतिहास के लिए जरूरी नहीं है । इतिहासका शत्र--दोनों के लिये एक-सा रहता है श्रौर श्रपने इस कार्य में वह जितना ही ईमानद उतना ही वह श्रेष्ठ इतिहासकार होता है । खुशामद से इतिहास की मर्यादा नष्ट हो वही परिश्थिति उसकी श्रप्रसन्नता में पैदा होती है । प्राचीन काल में राजा श्रौर नरेश श्रपनी प्रशंसा चाहते थे श्रौर इसके लिये प्रपनी सम्पत्ति से खुश करते थे । कवि को भी भ्रधिकांश प्रवसरों पर सम्पत्ति के सामने करना पडता था । यह मनोवूत्ति कवि श्रौर इतिहासकार के लिये श्रत्यन्त भयानक है प्रकार का श्रपराध प्राचीन काल के सभी कवियों को नह लगाया जा सकता । उस से कवियों ने प्रपनी कविताओओ मे इतिहास की सही घटनाश्रो का उल्लेख किया है । लेकिन प देखने को मिलता हैं। इसके श्रपराधी इस देश के कवि हो नहीं माने जा सकते । दूसरे इतिहास के सम्बन्ध में कुछ इसी प्रकार के पक्षपात देखने को मिलते हैं । यहाँ पर इस वि लिखने की श्रावश्यकता नहीं है । ऐतिहासिक सामग्री के लिये इस देश में दूसरे साधन भी है । भीगोलिक वृत्ता राजाशो के चरित्र घटनाश्रो को लेकर लिखे गये लेख विभिन्न प्रकार की धार्मिक पुस्तक में सहायता करती है । ऐतिहासिक काव्य ग्रत्थ स्मृति पुराण टिप्पणियाँ जन श्रुतियाँ शि प्ौर ताम्रपत्र जिनमे बहुत सी ऐतिहासिक बातो के उल्लेख मिलते हैं--इस कार्य मे स होते हैं । परन्तु इस प्रकार के सभी साधन इतिहास के श्रन्वेषक से बहुत सावधानी चा बात को कभी न भूलना चाहिये कि प्राज का इतिहास साहित्य मे श्रपना श्रलग से स्थान भारतवर्ष मे पैर रखते ही मैने इस बात का निर्णय कर लिया था कि एक ऐ सम्बन्ध मे जिसका ज्ञान योरप के लोगो को बिल्कुल नहीं के बराबर है मैं ऐतिहासिक भ्रवश्य करूंगा । अ्रपने इस निर्णय के श्रनुसार यहाँ आ्राते ही मैंने श्रपना कार्य ्रारम्भ के पूरे दस वर्षों तक एक जैन विद्वान की सहायता लेकर उन पुस्तकों की सामग्री लेने का रहा जिनमे राजपुतो के इतिहास की कोई भो घटना सिल सकतो थी । यह कार्य साधार उसके लिये श्रघिक से श्रघिक परिश्रम की श्रावर्यकता थी । इस कार्य श्र परिश्रम मे मुझे था । लेकिन मेरे स्वास्थ्य ने भ्रघिक साथ न दिया श्रौर रूनावस्था ने इस देश से लौट मुके सजबूर किया । यदि यहू स्वीकार करना पड़े कि कवियों ने भ्रपते वर्णन मे भ्तिशयोक्ति से काम उसके साथ यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि उस समय राजपूत जाति का बैभव नि तरवकी पर रहा होंगा । श्रचेक शताब्दियों तक एक बोर जाति का श्रपनी स्वत्त्रता के लि युद्ध करते रहना श्रपने पूर्वजों के सिद्धान्तो को रक्षा के लिये प्राणोत्सर्ग करना श्रौर मर्यादा के लिये बलिदान हो जाने की सावना रखना मनुष्य के जीवन की ऐसा श्रवस्था देखकर श्रौर सुनकर शरीर रोमांच हो जाता हैं । इस देश के ऐतिहासिक स्थानों से पहुँच मैंने सुना पौर समभा है यदि उसका सही-सही चित्र खीच कर मैं श्रपने पाठकों के




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