संतान कल्पद्रुम | Santan Kalpdrum 1921 Ac 911
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.93 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. रामेश्वरानन्द जी - Pt. Rameshwaranand Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४. इस देखते हें कि इस समय पश्चिमी आपाकी छश्ष अेणीकी दिक्षा्दकषाप्राप्त जितने ठोग उपस्थित हैं उनमेंसे देश और जाति- के शुमचिन्तक धडडत्त दी थोड़े माईके छा हैं । बाकी मान- मरयादाके मदमें डूब हुए अपने जातिभाइयोंको तुच्छ समझते है और मनुष्य मात्रके ऊपर अपने शुरूर गये का दख जमाते हैं । ऐसे मनुष्योंसे देश तथा जातिकी कुछ भी भाई नहीं होती । इस कथनसे कोइ यह न समझे कि दम उच्च श्रेणी- की शिक्षाके विरोधी है। नदी हमारा कथन यह दे कि उच्च श्रेणी- की दिक्षाके लिये उत्तम और श्रेष्ठ संस्कारयुक्त रज-चीय्यंसे सन्तान उरपन्न होनी चाहिए । जैसे एक बीजसे एक व्रक्षक उत्पन्न होनमें प्रथवी खाद जलवायु और धूप वमैरदकी आवइयकता हैं और इन सबके असुकूढ होनेपर भी यदि बीज उत्तम और दोषरदित न हो तो युक्त और यथाधथे साधन होनेपर भी दृश्चकों कल्पदुम नहीं बना सकते । इसी प्रकार बाछककी उत्पत्तिके ढिये माता-पिताका रजवीय्य दु्ुणोंसे दूषित और मानसिक शक्तिके उत्तम सस्कारोंसे रहित होतो ऐसे रज-बीयसे उत्पन्न हुए सन्तानकों उच्च श्रणीकी शिक्षा नही संभाल सकनी । इस बातक इजारों हृष्टान्त इस समय देशमे उपस्थित है । हजारो मनुष्य उच्च श्रेणीकी शिक्षा प्राप्त करके देश ओर जातिकी भलाईसे बदिमुख हैं जबद्स्त- की खुशामद और सेवासे अपनी उच्च ेणीकी शिक्षाका दूषित कर रहे हैं जबद्रनका आश्रय छेकर देशकी भलाई चाइनेवाछो- को गारत कर रहे हैं । इसका मुख्य कारण यद्दी दे कि उच्च श्रेणी- की दिक्षा प्राप्त करने पर भी वे उसम मेणीके मनुच्य नहीं बनते
User Reviews
No Reviews | Add Yours...