राजस्थान के इतिहास के स्रोत भाग - १ | Rajasthan Ke Ithas Ke Strot Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द राजस्थान के इतिहास के स्रोत ज् की कि न ७७... १०६० सा ने दा ले लिवर ..कानी जि खाद रे न 5. उट फ ७ 7 देनिक वामों में म्राने दाह वतन सभी श्राकार के मिलते हु (जनम घड़े कटोरियाँ रकाविया प्याले मटके कुण्डे मण्डार के कलण झ्रादि हैं । यहाँ से मिलने वाले काले रस सध्क छुपड नण्डार के कलण बादि हूं । यहाँ से मिलने वाले काले य॒ लाल सन्ञा क॑ बत्तना पर सफेदा लगा लिया जाता था शरीर जब बर्तन पक जाता था तो उस रंग वी हतकी रेया अपने श्राप में दड़ी पुरुता वन जाती थी । गोलाकार द् तथा तंग मु ह॒ वाले घड़े दिना स्टेण्ड तथा स्टेप्ड वोली रकावियाँ ढक्कन तथा बिना अलकरण के घड़े श्रादि भाण्डों के झनेक श्राकार व रूप यहाँ उपलब्ध होते हैं जिससे भाहड़ निवासियों की रुचि-वचित्य का पत्ता चलता है। साधारणतया थे मिट्टी के यतन हाथ से वनते थे परन्तु चाकू का नो प्रयोग इनके वनाने में किया जाता था । कई चर्तनों का ऊपरी भाग चाक से दनाया जाता था श्रीर पैंदे के भाग को हाथ से यनाकर उसके साथ जोड़ दिया जाता था । झलंकरण में छेद करना रंगना उभार या गड़ाव देना सम्मितित था लड़ी वाली रेखाएं गोलाकार श्राकृतियां तथा चक्कर वाली रेखाएं भ्रलंकरण में प्रपुक्त होती थीं. श्ौर ऐसा श्रलंकरण भाण्डों के ऊपर के भाग तक सीमित था मस्याँ शूल्यवान पत्थरों जैसे गोमेद स्फटिक श्रादि से झाहंड़ निवासी गोल मशियाँ दनाते थे । ऐसे मणियों के साथ काँच. पक्नी मिट्टी सीप श्रौर हड्डी के गोलाकार छेद वाले श्ंड भी लगाये जाते वे । इनको सुरक्षित करने के लिए मिट्टी के बत॑नों या डोकरियों का प्रयोग किया जाता था ।. इनका उपयोग झाभूपण बनाने तथा तावीज की तरह गले में लटकाने के लिए किया जाता था . इनके ऊपर सजावट का कामें सो रहता था । झाकार में ये गोल चपटे चतुष्कोण तथा पट्कोण होते थे । ये सामग्री आाहड़ सम्यत्ता के दुसरे चरण की मालूम होती है । च्य उपकररण--- झाहड़ के ऐतिहासिक काल के प्रन्य उपकरणों में चमड़े पूजा के पात्र ूड़ियाँ तथा सिलीनों का भी झपना स्थान है। पूजा के पात्र भी विविव श्राकार के देखे गये हैं जिनके किनारे ऊंचे या नीचे हुआ करते थे शरीर किसी- किसी में दीपक की व्यवस्था भी रहती थी । लिलौीनों में बल घोड़े हाथी चक भ्रादि मुख्य हैं 1 इन सभी उपकरणों के आधार पर कहा जा सकता है कि आआहुड़ की एक सभ्यता थी जिसका समृद्ध काल १९०० ई. पु. से १२३०० ई. पू. झाका जा सकता है । मकान बनाकर रहता था । यह 2 2०. 29 डे के टुकड़े मिट्टी के इस युग का मातव यहाँ कच्चे मिट्टी के ढलवां छत के मक की विशेषरूप से मांसाहारी था । परन्तु ऐसा भी दिखाई देता है कि वह नेहूं का झागे चलकर प्रयोग करने लगा। यहाँ पत्थर ताँवा और लोहे एवं हड्डी भौजारों तथा आभूपणों के बनाने में काम में लिये जाते थे । मिट्टी के क्तेन तथा खिलौने वनते ये 1




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