रक्त - मंडल खंड - १ | Rakta-mandal Khand - 1

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Rakta-mandal Khand - 1 by दुर्गाप्रसाद खत्री - Durgaprasad Khatri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्प्र चोट पर चोट अनुसार जिसे देने पर ही वे अपने बच्चे को वापस पा सकते थे भौर कभी इस धमकी पर कॉपते कि अगर पुलिस को खबर की गई तो लड़का मार डाला जायगा । तरह तरह की तर्कीबिं सोचने पर भी कोई कारगर होती दिखाई नही . पड़ती थी और इसी कारण वह समुची रात उन्हें चिन्ता फिक्र और घबराहट में ही काट देनी पड़ी 3 सुबह हृ ्ते ही वे पलंग पर से उठे भर अपने बृठक मे आये । वह टीठी निकाली और बडी देर तक उसे बरावर पढ़ते रहे । आखिर उन्टोने अपने मन मे कोई कार्रवाई करने का निश्चय किया और चीठी बस्द कर जरूरी कामों से निपटने चले गये । भाठ बजने के कुछ पहले ही सब तरह से फारिंग हो बट्कचन्द अपनी मोटर मे आ बैठे और शोफर से बोले कलेक्टर साहब के बंगले पर चलो । यह कहते हुए उन्होंने अपने चारो तरफ गौर की निगाह डाली । उनके चारो तरफ उनके नौकर चाकर ही थे कही कोई गौर आदमी नजर नहीं आ रहा था । मोटर तेजी से रवाना हई और पन्द्रद मिनट से कुछ कम ही देर मे कलेवटर साहब के बंगले के फाटक पर पहुँच गई । वट्कचन्द उतरे और बंगले के पास पहुँचे । सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे कि चपरासी ने आकर लम्बी सलाम की । उन्होने सलाम कबूल करते हुए कहा बड़ा ही जरूरी काम है साहब क्या कर रहे है ? चपरासी बोला मै अभी देखता हूँ हुज्र तशरीफ रक्खे । वट्कचल्द बारामदे मे रक्खी कुरसियो मे से एक पर बेठ गये और वार बार घडी की तरफ जो सामने ही टंगी थी इस तरह देखने लगे मानों उन्हे बहू त थोड वक्त मे कई काम निपटाने है । यकायक एक प्यादा उनके सामने भा खडा ह भा । उसके हाथ मे एक लाल लिफाफा था. जिसे उसने वट्कचन्द की तरफ बढ़ाया और कहा ह दूर को देने के लिये उस आदमी ने दिया है । लाल लिफाफा देखते ही न जाने क्यो वट्कचन्द का कलेजा काप गया । उन्होंने चौक कर उस तरफ देखा जिघर उस प्यादे ने बताया था । फाटक के पास खडा एक आदमी दिखाई पड़ा जिसने उन्हे अपनी तरफ देखता पा हाथ उठा कर चार उंगलियाँ दिखाई और तब उंगली होंठ पर रख चुप रहने का इशारा करने बाद एक तरफ को ला गया ।




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