नागरिक शास्त्र | Nagarik Shastra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : नागरिक शास्त्र  - Nagarik Shastra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

Add Infomation AboutBhagwandas Kela

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सामाजिक जीवन हैं कि जब्र किसी वालकक को मेड़िया आदि उठा ले गया तो वह जान- - वरों की सी ही बोली बोलने लगा यहाँ तक कि उसकी दझ्याकृति या शकल सूरत भी कुछ-कुछ पगुश्नों जैसी होंगयी । इससे स्पष्ट है कि समाज में रहने से हमारी भोतिक श्रावश्यकताओ्ों की पूर्ति होने के द्तिरिक्त हमे मनुष्यों का सा स्वभाव भाषा गुण श्रौर रहनसहन दि भी प्राप्त होता है । परिवार--मनुष्यों में मिलजुल कर रहने की प्रदत्ति प्राइतिक है । उन्हें एक दूसरे के साथ रहने के वास्ते पहला समूह--परिवार--श्रपने आप ही मिल जाता है इसका संगठन नहीं करना पड़ता । जन्म लेने के समय से ही प्रत्येक व्यक्ति का झ्रपने माता पिता से सम्बन्ध हो जानता है श्रौर पीछे दूसरे ादमियों से सम्बन्ध बढ़ता जाता है | श्रन्य प्राणी तो थोड़े-धोड़े समय ही माता की शरण में रदकर झ्रकेले रहने लायक हो जाते हैं परन्तु मनुष्य के बच्चे को तो कई वर्ष तक दूसरों के श्रासरे रहने की श्वश्यकता होती है । प्रत्येक मनुष्य यह सोच सकता है कि यदि वह बचपन में माता पिता या दूसरे सम्बन्धियों की सहायता न पाता तो उसका जीवन झ्रत्यन्त कष्टमय श्र प्रायः ब्सम्भव हो जाता पेरे- वार से हमें नाना प्रकार के सुख मिले ई उस ये हमारा बड़ा उपकार हुश्ना है। हमें भी चाहिए कि बड़े होकर श्रपने माता पिता श्रादि की समुचित सेव-सुभ्न पा करें उन्हें घुड़ाप या बीमारी झ्ादि में यथा सम्भव कष्ट न होने दें । गाँव और नगर--मसनुष्यों की झावश्यकताएँ इतनी श्रधिक हैं कि एक-एक परिवार के झादमी झलग-झलग अपनों आवश्यकताओं की पूति नहीं कर सकते । उन्हें दूसरे परिवारों की सद्ायता की ज़रूरत होती है । इस प्रकार कुछ परिवारों को इकट्ठा पास में घर यना- कर रददने की श्ावश्यकता का श्रनुभव होता है। इससे शाम चनने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now