मालिक और मजदूर | Maalik Aur Majadoor
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.25 MB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
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लियो टालस्टाय - Leo Tolstoy
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श्री शोभा लाल गुप्त - Shri Shobha Lal Gupt
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मालिक और मज़दूर है वह न केवल मेरे लिए. बिल्कुल निरथक है बल्कि मैं नहीं समझ सकता कि वह श्रौर किसी के भी कुछ उपयोगी हो सकता है । श्रौर जब तक मु्ते वह पोषण नहीं मिलेगा जो दूसरों के समान मेरे लिए आवश्यक है तर तक में आपके लिए शारीरिक भोजन पेदा नहीं कर सकता । यदि मजदूर ऐसा कहें तो क्या हो ? श्रौर यदि यह ऐसा कहे तो यह इंसी की नहीं बल्कि स्पष्ट न्याय की ही बात होगी । बौद्धिक परिश्रम करने वाले की श्रपेक्ा एक मजदूर का उक्त कथन कहीं ज्यादा ठीक होगा । कारण बौद्धिक-श्रम करने वाले की अपेक्षा शरीर-श्रम करने वाले का काम ज्यादा जरूरी होता है । दूसरे बुद्धि के स्वामी को वादाशुदा श्राध्या- त्मिक भोजन देने में कोई रुकावट नहीं हो सकती जब कि मजदूर भोजन के तभाव में श्रम करने में असमथ होता है । ऐसी दशा में यदि हमारे सामने उक्त प्रकार की सीधी-सादी श्र न्यायोचित मांग रखी जायें तो हम बोद्धिक-श्रम करने वाले व्यक्ति उसका क्या जवाब देंगे १ हम उस मांग की किस प्रकार पूत्ति करेगे ? हम यह तक नहीं जानते कि मजदूरों की जरूरत कया हैं । हम तो उनके रहन- सहन के तरीकों उनके विचारों और उनकी भाषा को भी भूल गए. हैं। अ्रज्ञान के वश होकर हमने श्रपना वह कत्तव्य भुला दिया है जिसे हमने श्रपने सिर पर लिया था । हम यह भी भूल गये हैं कि हमारा श्रम किसलिए हो रहा है श्रोर जिन लोगों की सेवा करने का हमने निश्चय किया था उन्हीं को हमने अपने वेज्ञानिक और कला-सम्बन्धी कार्यों का लदचय बना लिया है । हम शझ्रपनी ही प्रसन्नता श्रोर आनन्द के लिए उनका शध्ययन करते हैं । दम यह बिल्कुल भूल गए. हैं कि हमारा काम उनका अध्ययन और वणुन करना नहीं बल्कि उनकी सेवा करना है | अब हमको सावधान हो जाना चाहिए आ्रोर गहराई के साथ श्रात्म- निरीक्षण करना चाहिए । वस्तुतः हम उन परडे-पुजारियों के समान हैं
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