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Hindu Law In Its Sources by महामहोपाध्याय गंगानाथ झा - Mahamahopadhyaya Ganganath Jha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० ये स्मृतियां रची तो गई पर इन में दृढ़ विश्वास लेागें को श्रादि में नहीं हुआ । इस श्रविश्वास के मूल कारणां के कुमारिल भट्ट ने तन्त्रवात्तिक में यें बतलाया है-- इन स्मृतियेंके कत्ता मनुष्य हैं--इस लिये भ्रपैरुपेय वेद की तरह दन का प्रामाण्य स्वतः सिद्ध नहीं हे सकता । मन्वादि स्मृतियां का प्रामार्य मन्वादि ऋषियें की स्मरणशक्ति पर निर्भर है । फिर मनुष्य के वचन में कई तरह की श्रप्रामारय-शंका हे सकती है। फिर भी इन को वैदिक धर्मावलम्बियां ने प्रमाण माना है । इस से ये सर्वथा श्रप्रामाणिक ही हैं यह भी नहीं कहा जा सकता | इस सन्देह का निराकरण तभी हुद्आा जब भली भांति समालाचना करने पर यह स्पष्ट हुश्रा कि स्मृतियें में कुछ नई बात नहीं है-वेद में ही कही हुई बातें को विशद समभने याग्य शब्दों में कहा है । एक वार जब स्मृतियों में लागे। का विश्वास जम गया तब उन में भी लगभग वेद के तुल्य ही श्रद्धा हेने लगी--श्रौर यदि कहीं स्मृति में कही बातों का समर्थक वेद मैं नहीं पाया तो इसके साधन में नाना प्रकार की युक्तियां निकाली जाने लगीं । लाग यह कहने लगे कि वेद की कई शाखायें लुस हे। गई हैं--मनु याशवल्क्यादि ऋषि वेद के विरुद्ध कभी नहीं लिख सकते-- जहां कद्दीं इनके समर्थक वाक्य हमें वेद में नहीं मिलते वहां यही मानना उचित दागा कि ये वाक्य उन शाखाओ्ों में होंगे जा झब उपलब्ध नहीं हैं। विशेष कर जब स्मृतिकार स्वयं कहते हैं कि वेद ही ध का एक श्ाधार है । परन्तु श्राचार त्रत प्रायश्वित्तादि विषय में ते यह वेदमूलकता स्मृतियें की स्पष्ट जानी जासकती है । पर व्यवहारविषय में यह सम्बन्ध वेसा स्पष्ट नहीं है । तथापि इन विषयेंकी भी कुछ सूचनाएं वेद में मिल जाती हैं । जैसे पैतृक सम्पत्ति में पुत्रों का श्रश बराबर हेना चाहिये--स्मृत्युक्त नियम का मूल वेद में वह बाक्य कहा जाता है जहां लिखा है कि भगवान्‌ मनु ने श्रपनी सम्पत्ति के श्रपने लड़कों में बराबर बांटा । कैन से किस प्रकार के ग्रन्थ स्मृति कहे जा सकते हैं सब बराबर दर्ज के हैं या इनमें किसी प्रकार का न्यूनाधिक्य है । इसके प्रसंग ग्रन्थ- कारों में कुछ मतमेद है । नवीन ग्रन्थकारां ने इतिहास पुराण धर्म-




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