मानव - अधिकार | Manav Adhikar

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राजदेव त्रिपाठी - Rajdev Tripathi

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विष्णु प्रभाकर - Vishnu Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२६ सानव-अप्धिकार फल पाकर भी तोता पिजरे मे सखी नही रहता । मौका पाकर उड ही जाता है । गोस्वामी तुलसीदास ने रामायरा मे स्पष्ट लिखा है-- पराधीन सपनेहू सुख नाही । जब पराधीनता के कारण सपने मे भी सुख नहीं मिलता तो वास्तविक दुनिया में कसे मिल सकता है श्रौर मनुष्य है सख का खोजी । सुख के लिए उसते समाज का निर्माण किया है । सुख के लिए उसने विज्ञान की अ्रनत खोजे कर डाली । जब तोता तक स्वतत्रता छिंन जाने पर सोने के पिजरे मे रहते हए स्वादिष्ट से-स्वादिष्ठ भोजन पाते हुए सुख का श्रचुभव नहीं करता तो प्रारिणयों में स्वेश्र ष्ठ मानव शभ्रैपनी स्वतत्रता का भ्रपहरण कंसे सह सकता है। ग्राहारनिद्रा भयसेथुत च.. सासान्यसेतत्‌ पशुमिनंराणाम्‌ । ज्ञान हि देषा अधकों विशेषो ज्ञावेन हीना पशुशिस्समाना. ॥। आ्राह्मर निद्रा भय श्ौर मेथुन ये पद्द श्र मनुष्यों मे समान है लेकिन मनुष्य मे ज्ञान अ्रधिक है । ज्ञान के बिना सचुष्य पश के समान है । इससे स्पष्ट है कि ईश्वर ने मनुष्य को सब प्राणियों मे श्रेष्ठ माना श्रौर उसके मस्तिप्क मे ज्ञान जेसी बहुसुल्य वस्तु प्रदान की । उस ज्ञान के कारण ही वह स्वतन्ररूप से श्रपनी मानसिक भ्रौर शारीरिक शक्तियों का विकास कर सका । उस ज्ञान के कारण ही उसने स्वतत्रता की रक्षा की । सारे ससार में मनुष्य एक समान ही पेदा होते है । समान रूप से ही उनको विकास के लिए साधन मिलते है। स्वतत्रता श्रौर समानता मानव का जन्मसिद्ध अधिकार है । बरगद का विशाल पेड किसको प्यारा नहीं लगता उसको छाया मे सकडो पशु-पक्षी सुख पाते है। मनुष्य भी सुख का अ्रनुभव करता है । लेकिन क्या कभी किसीने उसकी छाया के नीचे किसी दूसरे पौधे को प्रतपते देखा है ? श्रौर वही क्यों किसी भी बडे वृक्ष के नीचे छोटा पौथा लगादे तो उस छोटे पौधे की पत्तिया पीली पड जाती है झ्ौर उसकी बाढ़ रुक जाती है ।




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