जीव - विज्ञान (जीव - सूत्र ) | Jeev-vigyan (Jeev - Sutra)

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jeev-vigyan (Jeev - Sutra) by बलदेवप्रसाद मिश्र - Baladevprasad Mishr

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about बलदेवप्रसाद मिश्र - Baladevprasad Mishr

Add Infomation AboutBaladevprasad Mishr

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
| ८. _ ः सी होनी चाहिए । यदि उपमा रूपक इयादि झ्राते भी हैं ता निकाल बाहर किये जायँ। यदि एक भो कठिन शब्द ( अथात्‌ू बह शब्द जा सर्वसाधारण में अली भाँति प्रचलित नहीं है ) ब्राना चाहे तो न झ्राने दिया जाय । इत्यादि ।. परन्तु मुझे ता यह समक पढ़ता है कि ऐसे कठिन शब्दों के अस्तित्व मात्र से भाषा दुरूद अथवा हेय नहीं हो जाती । रामायण में ऐसे . कठिन शब्दों की कसी नहीं फिर भो उसकी भाषा सवंजन-प्रिय हो रही है। फिर उपमा रूपक इत्यादि के पीछे लट्ट लेकर सिड़ जाना भी मुझे उचित नहीं जान पड़ता । हाँ उनकी आराधना करते ही न बेठे रहना चाहिए। परन्तु यदि वे स्वाभाविक रूप _ से आ जायेँ श्रौर अपने अस्तित्व से वण्ये विषय को राचक बना. _ दें तो इसमें बुराई ही क्‍या है ? मैं तेः उसे दो उपयुक्त साषा कहूँगा जा जीवित सी जान पड़े कारी बनावट से अलग रहे बण्य विषय को भला भाँति श्रौर राचकता के साथ प्रकट कर सके। मैंने इस प्रन्थ की भाषा-शेलली में बनावट लाने का रत्ती भर भी प्रयत्न नहीं किया है । हृदय से जो शैली स्वच्छ- न्दतापूर्वक निकलती चली गई उसे ही वर्णों में अट्लित करता चला गया हूँ । यह शैली यदि पाठकों को विशेष त्रटिपू्ण जान पड़ेगी तो अगले संस्करण में यथाशक्ति इसका परिमाजेन .. कर देने का प्रयन्न करूंगा । _.. इस ग्न्थ में भी प्राचीन भारतीय . दाशेनिक अ्न्थों के . समान सुर्चों का अयेाग हुआ है।. सूत्ररूप से यदि कोई




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now