रसखान और उनका काव्य | Raskhan Aur Uaka kavya

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Raskhan Aur Uaka kavya  by चन्द्रशेखर पांडे - Chandrashekhar Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सक्षिष्ठ परिचय श्७ कुछ अन्थध सिचारणीय बातें विवाह रर्खान के कौटुलिवा जीवन का कहीं कुछ भी पता नहीं लता । पता वही वैराग्य के पूर्व रसस्वान का विवाह हु था या सही कोई सतास थी या नहीं विचार करने से विदित होता हैं कि छनका विन्राह लत हुआ रहा होगा । दिवाह हुआ होता नो इनकी स्यी या सनान का कुछ वणन अवदय कहीं मिक्तता इनके वैराग्य लेने पर इनके ससुर के सगे अवन्य इन्टें मचाने आते ऊ।र इस पर रतखात अव्ब्य कुछ रचना करते किंतु दस सवघ कर उनका एक भी छद नदीं सिलता । तोरि मानिनी ते हियो फोरि मोहिनी मान मे यदि सारतिनी आर मोहिंगी में पत्नी को ओर सकेत समझा जाय तो सम्भव हूं कि वैद्य-पुन पा आसक्ता रहने के कारण इसकी पानी सदा इनसे स्ठो रहती रही हो और इनकी भत्तना करती रही हो फिर भी कोई पत्नी केवल इसी कारण से अपन पति से इतना नहीं च्ठ सकती कि उसके वैरा य छेने पर वह चुपचाप रहे । सौदय-प्रेंस ये सौदर्यापासक थे इसमें तो कई संदेह नहीं । जनश्नुति के अनुसार नैदय-पुत्र या स्त्री पर इचका प्रेम साहचस्गत नहीं सौदयगत ही बताया जाता है सोहिवी-मान का अधथ रूप का जादू ही हैं जब सौदर्य- निधान मन-मोहन मुर्ठीवर की छवि देखी तो उन्हीं पर अनुरक्त हो गये 1 सभव था कि छ्सी अन्य देवता का चित्र कृष्ण-चिंत्र से अधिक सुन्दर देखते सो उसी पर छटट्ट हो जाते । ओकृप्ण के प्रेम का कारण रूप ही पा यह इनके दोही से ही प्रमाणित हो जाता है यथा-- देख्यों रुप अपार मोहन सुन्दर इयास को । वह म्ज-राजकुमार हिय जिय नेननि में जस्यो ॥ जा ला पा प्रेमदेव की छर्बिहि रूखि भये मिया रसखाव ॥




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