पाश्चात्य संसार और भारतवर्ष | Panchayat Sansar Aur Bharat Varsh

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Panchayat Sansar Aur Bharat Varsh by देवकीनंदन - Devkinandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( झ ) तिक आकांक्षाओं से शुद्ध हुई लेरिवका फे इस प्रचार से मुझे आइचर्य हुआ । संयुक्ततज्य अमरीकी के छोग यदि फ्रभी इंगलेंड के राजनीतिक विरोधो इुए हैं. तो इस प्रकार का अंगरेज़ लेखक अमरीका के समाचार पत्रों से समाचार छांय कर उनकी अपराध करने की प्रकृति ओर उनको सिनेमाओं के द्वारा घृणित व्यमिचारका चित्र खींचनेमे' कैसा प्रसन्न होता पर क्यो यह सम्भव था कि अधिक से अधिक फ्रोध में भी प्रेसीडेंट विव्सन पर कभी यह मत प्रगर करने के लिये अभियोग लगाता कि ईसाई संस्कृति के प्रचार के लिये नीग्री लोगों का प्रपीड़न करना एक साधारण आवइयकता है ।” आगे वे कहते है”--''आचरण हीनता के दृष्टोग्त जब दम अन्य देशों 1के वातावरण में देखते हैं. तब वे हमे स्वसाविक ही। चड़े दिखलाई पढ़ते है' क्योंकि सफाई की दाक्ति जो कि अन्दर से काम करती है और उससे उलटी दाकियां जो सामाजिक पछड़ों को एक समान बनाये रखती हैं घह एक अजञनवी को दृष्टिगोचर नहीं होती और विशेषकर उसे जो कि आचरण हीनत। ही देखना चादता है। पूर्व में जब ' ऐसा समालोचक आता है शोर जब वह लाल पेम्सिल से चढ़ा चढ़ा कर दोपों के दिखाने में प्रस्न होता है तच यह हमारे समालोचकों को भी इस पर मजबूर करता है कि वह भी उनको गन्दी आदते' और आवरण हीनता जिनमें से कुछ पर एक बड़ा सभ्य खोल चढ़ा हुआ है केआधार पर पादचात्य समाज का बुरा चित्रण करे । इन में भी स्वराजी नेता अपनी स्वतस्त्र प्रकृति के कारण मिस मेयोके सदसे अधिक कोप भाजन हुए हैं । जहां श्रीयुत पटेल जेखे योग्य सजन सभापति हों जिनकी व्यवस्था सम्वन्धी प्रशंसा स्वयं वायसराय ओर बड़े अंग्रज़ों ने की है वह व्यवस्थापक ससाएं मिस मेयो को पेसी ही मालूम पढ़ती हैं जेखे कमरे में कुछ दारा- रती लड़के इस हो गये हों और एक घड़ी पफिलने पर उसमें




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