स्त्री के रूप | Stri Ke Roop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हर जवान पत्ति एसी हर कहानी को पम द करता है जो उस जसे ही कसी नायव या नायिका को आधार बना कर लिखी गई है। उमके दारा पती जाने वानी मेरी हर कहानी की नाधिका मे उसे हमेगा अपनी ही उब दिखती है जस मरा. ध्यान मेरा मन प्राण संमी सिमट वर उसी एक बिदु के साथ हमशा हमेगा क॑ लिए संबद्ध हो गया हो । सभी ायद रोता वी इसी सम्पूणतया श्रशत्मिक सचि का ही परिणाम है कि प्राज पिछते चार सालो से मैं उमक॑ साध हूं। वरना सारण रूप सं बौन लोग कसकारां क्घावारो को अपने मित्रो के रुप में चुनते हैं वे लोग सामाजिक प्राणी तो होते नहीं है । मैं दख रहा हु धीरे धीर उसे श्रथिकाविक समय त्तत घर पर रहेंने की आदन पड रही हैं। उसकी ाम अब सहर बे रेस्त्राओ मे नहीं बीतती । बहू सुबह ही से घर से निश्चल कर नहीं चली जाती है । उसे लेने के लिए रोजमरों नई नई कार भी नदी आती । उसका फोन दिन भर पहले वी भातति व्यसन नहीं रहता और तो श्रौर उमन इन दिनो सामाहारी खाना भी छोड दिया है। बया है यह सब जो प्रातमी को इतनी जी बन सकता है ? इस बुद्ध चेतना का उत्य झ्ादमो क॑ मन में किन परिस्थितियों की वजहू स होता है ? जीवन वी क्षण भगुरता वो दखकर या फिर परिवतत स्वयं में एक तथ्य है जीवन वा एक श्रावसमक तत्व इसलिए हो । रीता इन टिना बोलती कम है सुनदी अधिक है 1 चुप रह कर चहं दिन व दिन मर बहुत ही निकट झाती जा रही है । इतनी जधिक कि मैं उसके भीतर भी भाक सकता हू । कभी कभी मुझे नगता है भाया यह सब कसी निवट भविष्य मे शान बाल शयकर तूफान के पहल की गति तो नही है । सता व इस यवहार को मैं कभी भी एक सच्चाई के रूप म ग्रहण नदी करना सो उसे खीक होती है । मैं पल्ल की ही भाठि अपने नतिक्तावाद स उस बोर किए रहता हूं मगर वह उसका वोई उत्तर नहीं देती । हाँ व भी कभी कह दती है द्ापवा विश्वास नहों होता है क्या मेरा प्रति प्रत्न-पते हो?




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