चुने हुए एकांकी नाटक | Chune Hue Ekanki Natak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.85 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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चुने हुए एकाकी नाटफ ४
हर हु
दशरथ--पर शायद तुम्हें मालूम नहीं कि कल तुम्हारे राम
का 'झभिपेक है, '्ौर उसी उत्सव में यह दीपावली हो रही है ।
कैकेयी-भेरे राम का झभिपक, कल सवेरे--ब्ौर महाराज
ने उसकी सूचना तक देने की छझाघश्यकता नहीं समसी
दशरथ--तो क्या सचमुच छुपित हो गई; रानी *? मुझे
मालूम न था कि तुम बुरा मानोगी । तुम्दी बरावर पूछती थीं कि
राम को युचराज्ञ कब घनाछोगे ? तुम्हारी इच्छा के विपरीत कुछ
होता तो पूछने कीं श्यावश्यकता पड़ती । इसी से, इसी खे--
केकेयी--ठीक ही तो हुआ ।
दशरथ--तो अपनी झाज्ञा वापस लो । मददलों में दीपमाला
जगने दो । सारी दुनियोँ जिस छालोक मे नद्दा रही है उस 'झालोक
से राजम्रागण को वचित्त न करो।
कैकेयी-राजा की आज्ञा से राजरानी की झाज्ञा कुछ कम
नददीं होदी है, मद्दाराज ।
दशर्थ--राजरानी के सामने राजा की 'झान्ना छुल्ल मूल्य
नहीं रखती, ऐसा कहो; कंकेयी !
केकेयी-<यहद पुरुपों का शिप्टाचार मात्र है । इससे कुछ सार
होता तो मद्दारान की 'झोर से झकारण श्याज्ञा वापस लेने का
'छादेश न होता । कद्दो, राजरानी कुछ नहीं । उसका 'झादेश कुछ
नहीं । राजानज्ञा ही सर्वोपरि है | श्रन्त पुर मे भी शाज से राजाजा
पचलेगी । कद्दो, कहो; कहते क्यों नहीं; महाराज ?
दशरथ--वहडुत हो झुका, प्रिये ! जो सदा ठुम्दारी इच्छा
का दास है उसे ऐसा दोष तो न दो । झन्त पुर की कद्दती हो; को
नर
कि
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