Chune Hue Ekanki Natak by हरदेव बाहरी - Hardev Bahari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला दृश्य ] चुने हुए एकाकी नाटफ ४ हर हु दशरथ--पर शायद तुम्हें मालूम नहीं कि कल तुम्हारे राम का 'झभिपेक है, '्ौर उसी उत्सव में यह दीपावली हो रही है । कैकेयी-भेरे राम का झभिपक, कल सवेरे--ब्ौर महाराज ने उसकी सूचना तक देने की छझाघश्यकता नहीं समसी दशरथ--तो क्या सचमुच छुपित हो गई; रानी *? मुझे मालूम न था कि तुम बुरा मानोगी । तुम्दी बरावर पूछती थीं कि राम को युचराज्ञ कब घनाछोगे ? तुम्हारी इच्छा के विपरीत कुछ होता तो पूछने कीं श्यावश्यकता पड़ती । इसी से, इसी खे-- केकेयी--ठीक ही तो हुआ । दशरथ--तो अपनी झाज्ञा वापस लो । मददलों में दीपमाला जगने दो । सारी दुनियोँ जिस छालोक मे नद्दा रही है उस 'झालोक से राजम्रागण को वचित्त न करो। कैकेयी-राजा की आज्ञा से राजरानी की झाज्ञा कुछ कम नददीं होदी है, मद्दाराज । दशर्थ--राजरानी के सामने राजा की 'झान्ना छुल्ल मूल्य नहीं रखती, ऐसा कहो; कंकेयी ! केकेयी-<यहद पुरुपों का शिप्टाचार मात्र है । इससे कुछ सार होता तो मद्दारान की 'झोर से झकारण श्याज्ञा वापस लेने का 'छादेश न होता । कद्दो, राजरानी कुछ नहीं । उसका 'झादेश कुछ नहीं । राजानज्ञा ही सर्वोपरि है | श्रन्त पुर मे भी शाज से राजाजा पचलेगी । कद्दो, कहो; कहते क्यों नहीं; महाराज ? दशरथ--वहडुत हो झुका, प्रिये ! जो सदा ठुम्दारी इच्छा का दास है उसे ऐसा दोष तो न दो । झन्त पुर की कद्दती हो; को नर कि




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