सूरज प्रकास भाग - १ | Suraj Prakas Part- 1

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Suraj Prakas Part- 1 by आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ६ | लिया । इस प्रकार बृगलाणे पर विजय पाई श्रौर इसके वदाज बुगलाण कहलाये । ७ राजा पुजके सप्तम राजकुमार अहर थे । उन्होंने बगाल पर विजय प्राप्त की श्रौर उनके वदाज झ्रहर नामसे ही प्रसिद्ध हुए 1 ८. वासुदेव पुजके श्राठवें पुत्र थे । वे श्रपने बडे भाईके परम भक्त थे। यहा तक कि वे उनके नित्यकर्मके कार्योगे भी सहयोग देते थे, जेसे उन्हें र्नानके परचात्‌ कपडे पहनाना, खडाऊ देना, पूजाकी सामग्री तयार करना झ्रादि । एक दिन बड़े भाईने प्रसन्न हो उनसे राज्य मागनेको कहा । वडे भाईके श्रधिक श्राग्रह पर वासुदेवने इच्छा नहीं होने पर भी कन्नौजसे सात कोस दूर एक शिव-मदिरके पास नगर बसानेकी अ्रभिलाषा व्यक्त की । कुछ दिनो परचातु दोनो भाइयोने वहा पर पारक नासका नगर चसाया गौर उसका राजा वायुदेव बना श्रौर उसके वंशज पारकेश (पारकरा) कहलाये । € राजा पुजके नवें पुत्रका नाम उम्रप्रभ था । यह सोमभारती नासक सिद्धकी सेवा किया करता था । १२ वर्ष तक सेवा करने पर सिद्ध प्रसन्न हुग्ना ग्रौर उग्रप्रभको गंगाजल हाथमे लेनेको कहा । जब उसने श्रपने हाथमे जल लिया तो उसको उसमे सपें नजर श्रात्रया, इस पर राजाने घवरा कर जल उछाल दिया । तब सिद्ध हसा श्रौर राजाको खेद हुश्रा। सिद्धने राजाकी चिन्ता दूर करते हुए कहा कि श्रब तुम्हे हिंगलाजकी यात्रा करनी चाहिए । वहा पर कएमे तुम्हे यह सपं फिर दुष्टिगोचर होगा किन्तु इस वार तुम उसे जाने मत देना । सिद्धके वचनोके श्रनुसार वहां पर राजाको वह श्रग्निशिखा वाला सप॑ दिखाई दिया श्रौर उसने उसे तुरन्त पकड लिया । पकडते ही वह सपे खड्ग बन गया श्र हिंगलाज देवीने झाकाशवाणी की कि 'हे राजा तू इससे दक्षिण विजय कर' राजाने ऐसा ही किया श्रौर वहाके पवारोको हरा कर समुद्रमे खड्गको धोया । फिर राजाने वहा पर खड्गके नाम पर चदी श्रौर चदावर दो नगर बसाये ओर १३ वर्ष तक वही पर राज्य किया । इसके वद्ज चदेल कहलाये । १० राजा पूजके दशबवें राजकुमारका नॉम सुवुद्धि था । - इसको शिकारका बडा चाव था और प्राय अकेला ही दिकारको जाया करता था। एक दिन अमावइ्याकी रात्रिमे इसने जंगलमे भयानक प्रेतमाया देखी । भूत, पिनाच, योगनिया इत्यादि सब एक स्थाव पर श्रश्नि-क्रीडा कर रहे थे ।




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