हम्मीर रासो | Hammir Raso

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Book Image : हम्मीर रासो - Hammir Raso

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( श३ ) में हों” सिला दो, सिर्फ एक चृद्ध पुरुप ने फद्दा कि उस चढु्मान के फेर में न पढ़िए, रणथंभ पर चढ़ाई करना सहज नहीं है । परंतु यृद्ध की इस चात पर ध्यान भी न दिया गया । अलाउद्दीन ने उसी समय शाज्ञा दी कि ययासंभव शीघ्र दी फौज तय्यार की जाय । थादशाह फी श्माज्ञा पाते दी जददँ तद्दाँ पत्र भेजकर सोरठ, गिरनार और पहाड़ी देशों के 'अनेक राजपूत सरदार घुलाए गए | तथ तक इघर शादी वैतनिक फौज भी तय्यार दो गड़े और फौज के लिये '्ावश्यक रसद वरदास भी इकट्टी ो गई । थ निदान इस प्रकार 'अझरवी, कायुली, रूमी इत्यादि मुसलमान धीरो की सत्ताइंस लाख जंगी फीज शोर श्रट्टारद लाग परिकर छुल छ४ लाख मनुष्य, ५००० दाथी और पॉच लाय घोड़ों की भीड़ भाड लेकर 'अझलाउद्दीन ने रणथंभ गढ़ पर 'चढाई करने को चैत्र मास की द्वितीया सबत्‌ ११३८ को कूच किया । जिस समय यदद शादी दल बल राव हम्मीर जी को सरदद में पहुँचा उस समय बद्दों की अ्जा में कोलाइल मच गया । अलाउद्दीन के श्रान्नानुसार सब सैनिक सिपादी प्रजा को नाना प्रकार के फ्ट देने लगे । इसलिये सब लोग भाग-मागकर रणथंभ के गढ़ में शरण के लिये पुफारने लगे । इसी प्रकार निरपराधी प्रजा का खून करते हुए जब यदद दल चल “नल -डारणो गढ़” के किले पर पहुँचा तब चहों के किलेदार ने तीन दिन परय्यत शादी फोज का सुकाबिला किया । किंतु शत में किले पर थादशादी दयल दो गया। इसलिये यद्दीं बा किलेदार भी रणथंभ को दौड़ गया '्लौर उसने बादशाह के थगनित दल वल का समाचार विधिवत्‌ राव दस्मीर जी के समुय निवेदन शिया । इस समाचार के पाते हम्मीर की थक भूकुटी 'ौर भी टेढी दो गई, कमल समान नेत्र प्ग्नि-शिसा से लाल हो उठे, वाहु 'और 'छोठ फडकने लगे। रावजी का ऐसा ढंग देसकर 'अभयसिंद श्रमार, भूरसिद राठौर, हरिसिंह बेला, रणदूला चहुश्नान शरीर '्जमतसिंद इस पॉच सदौंरों ने २०००० फौज लेरूर शाद्दी फोल को रास्ते में रोक लिया




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