पृथ्वीराज रासो की प्रयुक्त प्रतियाँ और उनका पाठ | Prathviraj Raso Ki Prayukt Pratiyan Aur Unka Path

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Prathviraj Raso Ki Prayukt Pratiyan Aur Unka Path by माताप्रसाद गुप्त - Mataprasad Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ ६१२ |] सुकछे दूत त्तच तिंदि रिसाइ । भसमप्य सेव किस भूमि पाइ 1 वधौ समेत सामन्त सध्यध । उत्तरे खानि द्रवार तथ्य! पर तथा दर में 'झसमस्थ' के बाद न्खच्यः तक कौ शब्दावली छूटी दे। किन्दु ६० में इन चरणों के स्यान पर दो चरण सिंग्नलिसित वर च्वि गण दः-- सुक्क दूतत तव लिद्धि समध्य 1 रिसाइ उत्तरे जग्यि दरयार तथ्य 1 १०. कवि० ५८ ख ६१.२५३ ) का चरण ३ अन्य प्रतियों में हैड-न+ यरूयो चेद षदीर चद पिप्परौ मारतौ। 4 ५६ तथा दूर में प्रयम भ्चेदः फे वाद दुषरे श्वदः तफ के दाब्द छूटे हुए ई) ६० म दनके स्मान पर 'पुन्नपामार' दाब्द रख दिये गए हैं । ११, कविं० ६ ( ल्स० द२.१८३१ ) के चरण १ ओर र का पाठ अन्यों में हे -- क्य हय हय भाषास केलि सबनी सुब्शेस सिर 1० डिक च्छित कामक्िकि दश्रर वर्जी सुहम दर । प९ तथा ६२ मैं *सज्ची' के बाद 'बजी* तक की झाब्दावली छूटी हुई है । ६० में दोनों 'चरणा का पाठ दष रकाम्‌ द -- हि इय हय दय जायास बेलि सरिनिय सुदस इरि 1 कटु गघरिग कटं प्रिग रिग यरदरिग सुदृढ भर ॥ १२. वबि० ३८ =सख० ६१.२१द्‌४) के चरण २ ओर ३ अरन्योमे 8ः-- हय त्तम दुस्सद भिखन स्यामि हुञ्तै सुभ घर! हों रचिमडछ भेदि जीवे रगि सत्त न छंठीं । ५९ तथा ६९ में मिलन के मिल के बाद स्मिर के ल्रसक का अद छूटा हुआ है; दे ० में दोनों चरण इस प्रतार बर दिए गए, हैं £-- म तुम दुसद भिख्गि सत्त न दरौ सद्धर 1 इम वेस भव्निग नरे करि चंड चिष्टटयौ। ये उदाद्रणभीभ्रके पूर्वदधं मात्र से हैं, उत्तरादध में «० में इस प्रकार के प्रशेप और भी अधिक हैं; ५९ तथा ६२ उत्तराद्ध॑ में भी वैसे दी हैं, जैसे ऊपर पूर्व में मिले हैं । प्रकट है कि ६० अपनी शा रा के पाठ की चास्तविक प्रतिनिधि नह्दीं रद्द गई है, ५९ तया ६२ हो में उसकी यतिनिधि होने की योग्यता है | पु ५९ और दे में से, जैसा दगने ऊपर देखा है, दर वी अपेक्षा ५९ बम प्रक्षि्त हे वद कुछ कम खण्डिन भी दै--फेचल प्रारम्भ के ३३ रूपक इसमें नहीं दे, जयफि दर में मारम्म के १७ रूपय नहीं हैं। इसल्ए सम के पाठ के छिए ५९ राख्यक प्रति वा दी उपयोग किया गया है, केवल प्रारम्भ के उस अदा के लिए जो ५९ सख्यक प्रति में सण्दित है, ६० रउपक प्रति का उपयोग किया गया है । इस द्यासा के पाठ में छुल १९६ खण्ड दे, और छुल रूपक-सख्या १११० के लगमग दे । अ० परिवार की ये प्रतियाँ मुद्दे छधियाना के श्री वेणी प्रसाद च्यर्मा के द्वारा घास हुई यीं, जिन्देंनि इन्हें इस शाखा के पाठ संपादन के लिए बात किया या । इस इपा के लिए में उनवा भभारी 1 ५९ सल्यक प्रति सुलिचित दे । इसका अकार १०.५० ८६.२५० हे । इनमे अतिचिपि-तिथि नहीं दी दुई दै | अन्तम निम्नटिचित दोदा मव्य मातादैजो ६० तया द्रम नदी दै :-- मार्जन ए सूर सूव द्ट्रमचचेदु उदार! शस्तौ पयोचराज कौ रायौ रुगि संसार किन्ठु यदद दोहा ुष्पिकाका नदीं ख्गता दै) बर्कि निम्नलिखित पूर्ववर्ती छन्द्‌ पर आधारित उसका विस्तार मात लगता है :--




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