मध्य हिंदी - व्याकरण | Madhya Hindi - Vyakaran
श्रेणी : समकालीन / Contemporary
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.88 MB
कुल पष्ठ :
240
श्रेणी :
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No Information available about पं. कामताप्रसाद गुरु - Pt. Kamtaprasad Guru
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“स्थान से उत्पन्न होनेवाले खरों को सवण कहते हैं ।
जिन स्वरों के स्थान एक से नहीं होते, वे श्सवर्ख
' कहलाते हैं । अ, री परस्पर सबर्ण हैं। इसी प्रकार इ,.
'ई तथा उ, ऊ सवर्ण हैं। अर, इ वा अर, ऊ अथवा इ, ऊ.
५ असवशे स्वर हैं ।
[ सूचना --ए, ऐ, झ्रो, शो, इन संयुक्त स्वरों में परस्पर सवर्णता
* नहीं है; क्योंकि ये श्रसवर् स्वरों से उत्पन्न हैं।]
रे०--उच्चारण के अनुसार खरों के दो भेद श्र हैं--
/ (१) साबुनासिक ( २ ) निरनुनासिक |
यदि मुँह से पूरा पूरा श्वास निकाला जाय तो शुद्ध---
“निरचुनासिक--'्वनि निकलती है; पर यदि श्वास का कुछ भी
“अंश नाक से निकाला जाय, तो श्रचुनासिक ध्वनि निकलती
है। अबुनासिक स्वर का चिह्न ( ) चंद्रबिंदु कहलाता है; .
च जेसे--गाँव, ऊँचा । अनघुस्वार श्रौर अनुनासिक व्यंजनों के
समान चंद्रबिंदु कोई स्वतंत्र वर्ण नहीं है; वह केवल अनु-
“नासिक स्वर का चिह्न है ।
३१--हिंदी में ऐ श्रौर औ का उच्चारण संस्कृत से सिन्न
' होता है। तत्सम शब्दों में उनका उच्चारण संस्कृत के ही
अनुसार होता है; पर हिंदी में ऐ त्म्यू श्रौार झो अबू के
समान बोला जाता है; जैसे-- अल
संस्कृत--मैनाक, सदैव, ऐश्वंयं, पौत्र, कलुक ।
ः हिंदी--है, कै, मेल, सुने, शरीर, साधा | ः
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