मृत्यु - भोज तथा अन्य वैज्ञानिक कहानियां | Mrityu-bhoj Tatha Anya Vaigyanik Kahaniyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.93 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सृर्युन्भोज दर
देखा । श्राशका से मुरली की आँखें फैल गयी । बही ऐसा न हो कि उठाने के
साथ ही गेंद घधडाम से फट जाए ।
पोंद न फटी ।
पत्नी ने उसे उसी कॉरनर-टेवल पर रख दिया, जहाँ मुरली ने, भझपनी
बेहोशी दूर होने के साथ, उसे पहली वार देखा था ।
परनी दापस पलग की तरफ़ छाती हुई दुददुदा रही थी, “कॉरनर-टेदल
पर से वह गेंद गिर कंसे गई ?”
*पपता नहीं ।”
“गिरने की आवाज़ तो हुई होगी ।
“शायद ! मुझे नहीं मालूम ।”
“क्या है बहू चीज ? ”
*एक फालतू पुर्जा ।”
सफेंक्दू ?”
नही ।”
सकयो 2”
खुन्दर है-है न?”
ही, है तो सुन्दर ! उसकी डिजायत में एक भ्रजीब-सा-सम्मोहन है 1”
“सम्मोहन ?” मुरली की मौहि उठी ।
“माप चौंके क्यो ?”
“नहीं तो ! झौर सुरलो ने चाय वी श्रन्तिम चुस्की खीच कर, खाली वप
पल्नी की थोर बढ़ा दिया ।
“पत्नी भी चाय पी चुकी थी । “अब धाप सो जाइए शार्खे भूद वर ।”
वह स्नेह से कुछ इस तरह बोली, गोया उसके पति को मालूम ही न हो कि
सोने के लिए भले भू दना जरूरी होता है ।
मुरली ने भाँखें सूद सी।
सिडिक् ! --दरवाज़ा बन्द होने की झावाज़ । भवश्य पत्नी जा चुकी थी
मुस्ली ने बाँखें सोल दीं 1 उसे चैन नहीं था । कमरे में उसने सदर थी. भ्केला
पाया । पत्नी अब तक किचन में पहुंच चुदी होगी **
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