वेदान्त दर्शन ब्रह्मसूत्र के प्रधान विषयों की सूची | Vedant Darshan brahmasutra Ke Pradhan Vishyo ki Suchi

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Vedant Darshan  brahmasutra by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१७ विषय ब्रह्मविद्याकि हानि आदि और प्राप्ति 1 प्रमपदकी प्राप्तिद् आदि . दोनों प्रकारके फर्छोंका सर्वत्र न कक ब्रह्मछोकमे जानेवाठे शानी महात्माके पुण्य और पापोंकी । यहीं समाप्ति संकल्पानुसार घ्रझ्लोक-गमन या यहीं ब्रह्म- 1 सायुज्यकी प्राप्ति सम्भव ब्रह्मछोक जानेवाले सभी उपासकोंके छिये देवयानमागंसे गमनका नियमः किन्तु कारक पुरुपोकि छिये इस नियमका अभाव के मेक अक्षरत्रह्कके सर्वत्र न्रह्मके वणनसे अध्याहार आवश्यक मुण्डक क्ठ और दवेताश्वतर आदिमे जीव और इंश्वरकों एक साथ छदयमे स्थित बतानेवाली विद्याओकी एकता? श्रह्म जीचात्माका भी अन्तर्यामी आत्मा है इसमे पिराघका परिहार जीव और ब्रह्कके भेदकी औपाधिकताका न न७-रेर में दे निराकरण एवं विरोध-परिहार कल ब्रह्मडोकमे जानेवाठे सभी दिये भोग मोगनेका अनिवायं नियम नहीं चन्वनसे मोक्ष ही विद्याका मुख्य फछ+ कर्मसे मुक्तिका प्रतिपादन करनेवाले पूर्वपश्नका उद्छेख और खण्डनः ब्रह्मविद्यासे दी मुक्तिका प्रतिपादन तथा साघकाके भावानुसार विद्याके फलमे भेद पर दारीरसे मिन्न आत्माकी सत्ता न माननेवाले नास्तिक-मतका दे हा डा के के के. यज्ञाडसम्बन्धी उपासना प्रत्येक वेदकी गांखावालोके लिये अनुष्टेय है एक-एक अज्ञकी अपेक्षा सब्र अड्डे पूण उपातना श्रेष्ठ है दयन्दादि मेद्से विद्याओंमे मिन्नता है फछ एक होनेसे ५-६० साघककी इच्छाकें अनुसार उनके अनुष्ानमे घिकल्प हैं किंतु मिन्न-भिन्न फवाटी उपासनाओंकि अनुष्ठानमे कामनाके अनुसार एकाधिक उपासनाओंका समुब्वय भी हो सकता है-- इन सब बातोंका वर्णन नर कक ६१-६६ उपासनाओमे समुचय या समाहारका खण्डन चोथा पाद ₹.. ज्ञानसे हीं परम पुरुपार्थकी सिंद्धि २-७... प्विया कमंका अड्ड है जेमिनिके इस मतक्रा उल्डेख अर जैमिनिके उक्त मतका खण्डन तथा विद्याकर्मका अज्ञ नहीं घ्रह्मप्राप्तिका स्वतन्त्र साघन है? इस सिद्धान्तकी पुष्टि र७२र-र७४ र७इ४-र२७८ र७८-२८६ २ट६-२९४ २९४-२९६५ र९५-२९८ र६८-रे०० डेट उलन्ट्--देश0




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